Invesment क्या होता है और इन्वेस्टमेंट कैसे करे

निवेशक हमेशा रिस्क को कम करने के लिए अपने पोर्टफोलियो में विभिन्न सेक्टर और अलग अलग तरह के स्टॉक्स रखना चाहते हैं. इस दृष्टि से किसी भी बाहरी बाजार में निवेश नए विकल्पों को खोल देता है. US बाजार में कई दूसरे देशों की कंपनियों भी खुद को लिस्ट करवाती है.
Trading और Investment क्या हैं, दोनों में क्या अंतर है
जब भी नए लोग शेयर मार्केट में आते है। उसके मन में ये सवाल जरूर आता ही हैं। Trading और Investing क्या है इन दोनों में क्या अंतर होते हैं। ये सवाल मन में आना जायज भी हैं। जब तब नए लोगो को ये समझ Invesment क्या होता है और इन्वेस्टमेंट कैसे करे नहीं आते उसे कैसे पता लगेगा उसका जोखिम क्षमता और लक्ष्य के हिसाब से, Trading और Investing में उसके लिए किया बेहतर होगा। आज हम जानेंगे Trading और Investing होता क्या है, दोनों में क्या अंतर हैं, Trading कितने तरह की होते हैं। साथ ही साथ जानेंगे कि ट्रेडिंग से हर रोज कमाई कर सकते है या नहीं।
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Trading क्या होता है:-
जब भी आप शेयर को खरीदते हो और उस दिन ही बेच देते हो। तब इसे Trading कहते हैं। मतलब आप Stock Trading में ज्यादा समय तक शेयर को अपने पास नहीं रख सकते हो। मान लीजिए आप एक शेयर खरीदा 200 रुपये में प्रॉफिट होने पर आपने उस दिन ही 220 रुपये में बेच दिया। इसी प्रोसेस को कहते है ट्रेडिंग। Trading करते वक्त Trader हमेशा Technical Analysis के साथ चलते हैं। जिससे उस कंपनी के शेयर प्राइस को कुछ समय आगे का शेयर प्राइस अंदाजा हो जाता हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कंपनी क्या काम करती है, भविष्य की योजना क्या हैं। सिर्फ ये देखा जाएगा शेयर प्राइस किस तरफ जा रही है। Trading करते समय न्यूज़ पर ध्यान देना बहुत जरुरी होता हैं. क्युकी कोई अच्छी खबर किसी भी शेयर को ऊपर ले जा सकती हैं। और बुरी खबर एकदम से नीचे भी ला सकती हैं।
Trading के प्रकार (Types of Trading):-
बहुत सारे Types of Trading होते है मुख्य रूप से 5 तरह का होता है। जिससे ट्रेडर ट्रेडिंग करके पैसा कमाई कर सके।
Investing क्या होता है:-
जब कोई शेयर आज खरीद के बहुत साल बाद बेच देते है तब इसे Investing कहते हैं। इन्वेस्टिंग में आप बहुत लंबे समय के शेयर को अपने Demat Account में रखते हो। कंपनी के वित्तीय विवरण, पिछले प्रदर्शन, भविष्य में होने वाले ग्रोथ को देखते हुए ही किसी भी शेयर में इन्वेस्ट करता हैं। Investing में Fundamental Analysis करना बहुत जरुरी हैं। जिससे आपको कंपनी के बारे अच्छी नॉलेज होगा और भविष्य में अच्छा रितर्न कमाके देगा।
काम की खबर: नजारा का IPO तो खुला, लेकिन जानिए कैसे करें IPO में निवेश, डीमैट अकाउंट है जरूरी
हमारे देश में बचत के पैसे लगाने यानी निवेश करने के कई तरीके हैं। इन्ही में से एक है 'इनीशियल पब्लिक ऑफर' यानि IPO। निवेश का ये तरीका आज कल ट्रेंड में है। अगर आप भी IPO में निवेश करने का प्लान बना रहे हैं या करना चाहते हैं तो सबसे पहले ये समझ लीजिए कि IPO क्या होता है? दरअसल, जब कोई कंपनी अपने स्टॉक या शेयर्स छोटे-बड़े निवेशकों के लिए जारी करती है तो उसका जरिया IPO होता है। इसके बाद कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट होती है।
IPO होता क्या है?
जब कोई कंपनी पहली बार अपनी कंपनी के शेयर्स को लोगों को ऑफर करती है तो इसे IPO कहते हैं। कंपनियों द्वारा ये IPO इसलिए जारी किया जाता है जिससे वह शेयर बाजार में आ सके। शेयर बाजार में उतरने के बाद कंपनी के शेयरों की खरीदारी और बिकवाली शेयर बाजार में हो सकेगी। यदि एक बार कंपनी के शेयरों की ट्रेडिंग की इजाजत मिल जाए तो फिर इन्हें खरीदा और बेचा जा सकता है। इसके बाद शेयर को खरीदने और बेचने से होने वाले फायदे और नुकसान में भागीदारी निवेशकों की होती है।
कैसे कर सकते हैं निवेश शुरु?
US बाजार में निवेश के दो रास्ते हैं.
पहला तरीका सीधे निवेश का है. इसमें निवेशक भारतीय बाजार की तरह ही ब्रोकर के साथ रजिस्ट्रेशन कर स्टॉक्स में खरीद बिक्री कर सकता है. आजकल भारतीय ब्रोकरेज कंपनियां भी अमेरिकी ब्रोकरेज हाउस के साथ करार कर निवेशकों को आसान निवेश की सुविधा देती हैं. निवेशक जरूरी पैन कार्ड, घर के पते को सत्यापित करने वाले ID के साथ सीधे अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी के साथ भी बाजार में व्यापार के लिए रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं.
दूसरा तरीका म्यूचुअल फंड के रास्ते निवेश का हो सकता है. भारत में अनेकों म्यूचुअल फंड US बाजार आधारित फंड चलाते हैं. ऐसे फंड या तो सीधा अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड शेयरों में निवेश करते हैं या ऐसे बाजारों से जुड़े दूसरे म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं. इस प्रक्रिया में किसी अलग तरह के रजिस्ट्रेशन और बाजार के गहरी समझ Invesment क्या होता है और इन्वेस्टमेंट कैसे करे की जरूरत नहीं है.
पैसों के लेनदेन की क्या है प्रक्रिया?
अमेरिकी बाजार में निवेश के लिए भारतीय करेंसी को US डॉलर में बदलना होता है. फॉरेन एक्सचेंज संबंधी गतिविधि होने के कारण यहां RBI के लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के नियमों का पालन जरूरी है. नियमों के तहत एक व्यक्ति बिना विशेष अनुमति के एक वित्तीय वर्ष में 2,50,000 डॉलर यानी करीब 1 करोड़ 80 लाख रूपये भारतीय सीमा के बाहर निवेश कर सकता है.
किसी भी बाजार में निवेश से बनाए पैसे पर भारत सरकार टैक्स लगाती है. नियमों के अनुसार अवधि के मुताबिक शार्ट या लांग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगाया जा सकता है. हालांकि डिविडेंड पर टैक्स US गवर्नमेंट लगाती है.
निवेश से पहले किन बातों को समझना जरूरी?
US या अन्य विदेशी बाजारों में निवेश से पहले इन्वेस्टमेंट से जुड़े विभिन्न तरह की फीस और चार्ज को समझना काफी जरूरी है. रुपये को डॉलर में कन्वर्ट करने की प्रक्रिया से लेकर म्यूचुअल फंड द्वारा चार्ज की जाने वाली एक्स्ट्रा फीस कमाई पर असर डाल सकती है. ब्रोकरेज कंपनियां भी स्पेशल दरों पर ब्रोकरेज चार्ज करती है. ऐसे में बेहतर है कि शार्ट टर्म के लिए और ज्यादा समझ के बिना निवेश ना करें. लंबे समय के निवेश ज्यादा रिटर्न दिला सकता है. ज्यादा रिस्क से बचने के लिए इंटरनेशनल म्यूचुअल फंड में निवेश बेहतर हो सकता है.
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2.म्यूच्यूअल फंड की लागत:-
म्यूच्यूअल फंड को संभालने हेतु आपके द्वारा जो निवेश किया गया फंड है उसमे से कुछ पैसा expense ratio के रूप में फंड हाउस को दे दिया जाता है। यदि हम कम अवधि हेतु निवेश करते हैं तो ये जो खर्च है वो हमारा कम लगेगा लेकिन वही जब हम लंबे समय हेतु निवेश करते हैं तो ये बहुत ज्यादा हो जाता है।
यदि हम म्यूचुअल फंड के निवेश को 1 वर्ष के अंतर्गत ही निकाल कर ले आते हैं तो हमें उस पर 1% Exit Load देना पड़ेगा। ये NAV का बहुत ही छोटा सा हिस्सा होता है। Exit Load को लगाने का एक ही मकसद है कि निवेशक बाहर न जा पाए क्योकिं कई लोग जो होते है वो स्कीम्स मे ही एंट्री तथा एग्जिट करते रहते है। यह उन लोगो के लिए बेकार होता है जो कि म्यूच्यूअल फंड में से अपना पैसा जल्दी से निकालना चाहते है।
4.लॉक इन अवधि:-
लॉक इन अवधि का मतलब यह होता है कि हमें हमारा निवेश किया गया पैसा एक निश्चित समय हेतु जमा करना होगा तथा उस दौरान हम उस जमा पैसे को निकाल नहीं सकते है। लेकिन अगर हम उस पैसे को निकालते हैं तो हमें अपने निवेश पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।
म्यूच्यूअल फंड स्कीम पर भी हमकों टैक्स देना पड़ता है जिससे कि हमारे मुनाफे का कुछ प्रतिशत कम हो ही जाता है। यदि हम 12 महीने से कम समय के लिए इक्विटी में निवेश करते है तो हमें short term capital gain के रूप में 15% टैक्स देना होगा।
6.नियंत्रण की कमी:-
जैसा की हम सभी जानते है कि म्यूचुअल फंड में हम जो पैसा निवेश करते है उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं रह पाता है, क्योंकि उसे फंड मैनेजर के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह मेनेजर अपनी इच्छानुसार हमारे निवेश को स्टॉक मार्केट या अन्य बाजार में लगाता रहता है।
निवेश करने से पहले आवश्यक जानकारियों के बारे में जान लेना चाहिए क्योंकि अगर हमे इन बातों की जानकारी नहीं होगी तो डायरेक्ट निवेश करने में हमारे द्वारा गलतियों की संभावना रहती है। अधिक रिटर्न पाने के लिए डायरेक्ट निवेश बेहतर विकल्प होता है लेकिन बिना समझ के ये करना बेवकूफी भरा कदम हो सकता है।
आइए अब दोनों की ही विशेषताओं और खामियों को जानने की कोशिश करते हैं:
1) एकमुश्त निवेश (Lump Sum Investment) क्या है?
एकमुश्त (Lump Sum) निवेश का अर्थ है कि निवेशक अपनी पूंजी एक ही बार में निवेश करता है और आवश्यकता पड़ने पर ही दोबारा पूंजी लगाता है यानी टॉप अप करता है।
एकमुश्त निवेश के क्या Invesment क्या होता है और इन्वेस्टमेंट कैसे करे लाभ हैं?
यह विधि आम तौर पर अनुभवी या मोटी रकम रखने वाले निवेशकों के लिए सही होती है। इस विधि में अपनी जोखिम की क्षमता को बढ़ाना भी जरूरी है।
एकमुश्त निवेश करने वाले निवेशक बाजार के उतार-चढ़ाव के रुख को अपने अनुसार मोड़ सकते हैं। यह शैली आम तौर पर उन व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक है, जिनके पास निवेश के लिए एक बड़ी राशि है।
एकमुश्त निवेश पर लाभ कमाने की संभावना तब अधिक होती है जब बाजार अस्थिर दौर से गुजरा हो और एक बार फिर ऊपर चढ़ने की तैयारी कर रहा हो।