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वेव विश्लेषण

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दिल्ली में बढ़ रही ओजोन गैस

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नई दिल्ली. उत्तरी भारत के तमाम हिस्सों में फ़िलहाल लगभग हर कोई इस वक़्त एक जानलेवा हीट वेव का अनुभव कर रहा है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि भारत समेत पाकिस्तान में भी जानलेवा हीटवेव तैयार हो रही है। ये वो इलाका है जहां दुनिया के हर पांच में से एक व्यक्ति गुजर-बसर करता है।

पाकिस्तान के जैकबाबाद में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाने का अनुमान है। यह धरती के सबसे गर्म स्थानों में से एक माने जाने वाले इस शहर में गर्मी के सर्वकालिक उच्चतम स्तर के नजदीक पहुंच रहा है। भारत की राजधानी दिल्ली भी 44-45 डिग्री सेल्सियस की तपिश से बेहाल है और यह अब तक के सबसे गर्म अप्रैल के आसपास ही है। वहीं, भारत के उत्तरी इलाकों के कुछ हिस्सों में पारा 46 डिग्री तक पहुंच सकता है। हीट वेव से जुड़ी चेतावनियां जारी की जा रही हैं। जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि साल के शुरुआती महीनों में ही इतनी प्रचंड गर्मी खासतौर पर खतरनाक है।

पर्यावरण वैज्ञानिकों के एक ताजा विश्लेषण के मुताबिक हीट वेव का सीधा सम्बन्ध जलवायु परिवर्तन से है।

इंपीरियल कॉलेज लंदन की डॉक्टर मरियम जकरिया और डॉक्टर फ्रेडरिक ओटो ने पाया कि इस महीने के शुरू से ही भारत में जिस तरह की तपिश पड़ रही है, वह पहले ही एक आम बात हो चुकी है क्योंकि इंसान की गतिविधियों की वजह से वैश्विक तापमान लगातार बढ़ रहा है।

इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रंथम इंस्टीट्यूट में रिसर्च एसोसिएट डॉक्टर मरियम ने कहा "भारत में हाल के महीनों में तापमान में हुई बढ़ोत्तरी का बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। वैश्विक तापमान में वृद्धि में इंसान की गतिविधियों की भूमिका बढ़ने से पहले हम भारत में 50 वर्ष में कहीं एक बार ऐसी गर्मी महसूस करते थे, जैसे कि इस महीने के शुरू से ही पड़ रही है लेकिन अब यह एक सामान्य सी बात हो गई है। अब हम हर 4 साल में एक बार ऐसी भयंकर तपिश की उम्मीद कर सकते हैं और जब तक प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन पर रोक नहीं लगाई जाएगी तब तक यह और भी आम होती जाएगी।"

इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रंथम इंस्टिट्यूट में जलवायु विज्ञान के सीनियर लेक्चरर डॉक्टर फ्रेडरिक ओटो ने कहा "भारत में मौजूदा हीटवेव जलवायु परिवर्तन की वजह से और भी गर्म हो गई है। ऐसा इंसान की नुकसानदेह गतिविधियों की वजह से हुआ है। इनमें कोयला तथा अन्य जीवाश्म ईंधन का जलाया जाना भी शामिल है। अब दुनिया में हर जगह हर हीटवेव के लिए यही मामला होता जा रहा है। जब तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बंद नहीं होगा, तब तक भारत तथा अन्य स्थानों पर हीटवेव और भी ज्यादा गर्म तथा और अधिक खतरनाक होती जाएगी।"

डॉक्टर फ्रेडरिक ओटो वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के नेतृत्वकर्ता हैं और टाइम मैगजीन ने वर्ष 2021 के सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों में उन्हें नामित किया था।

जिन तापमानों का पूर्वानुमान लगाया गया है वह मई-जून 2015 में भारत और पाकिस्तान में बड़ी जानलेवा हीटवेव के जैसे ही हैं, जिनमें कम से कम 4500 लोगों की मौत हुई थी। जून 2015 की जानलेवा हीटवेव के दौरान नई दिल्ली हवाई अड्डे पर अधिकतम तापमान 44.6 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था। वहीं उड़ीसा के झाड़सुगुड़ा में पारा 49.4 डिग्री सेल्सियस के सर्वोच्च स्तर पर जा पहुंचा था। पाकिस्तान के कराची में 45 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया था। वहीं, बलूचिस्तान और सिंध प्रांतों के अन्य कुछ शहरों में पारा 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

भारत में गुजरा मार्च का महीना पिछले 122 सालों के दौरान सबसे गर्म मार्च रहा। इस अप्रत्याशित गर्मी की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में गेहूं के उत्पादन में 10 से 35 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई।

भारत के कुछ विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न भीषण गर्मी से लोगों को राहत दिलाने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत पर भी जोर दे रहे हैं।

गुजरात इंस्टिट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर और कार्यक्रम प्रबंधक डॉक्टर अभियंत तिवारी ने कहा

"न्यूनीकरण संबंधी कदम उठाते वक्त भविष्य की वार्मिंग को सीमित करना बहुत आवश्यक है। तपिश के चरम, बार-बार और लंबे वक्त तक चलने वाले दौर अब भविष्य के खतरे नहीं रह गए हैं, बल्कि वे एक नियमित आपदा बन चुके हैं और अब उन्हें टाला नहीं जा सकता।"

"गर्मी से निपटने की हमारी कार्य योजनाओं में अनुकूलन के उपायों को भी सुनिश्चित करना आवश्यक होगा। जैसे कि जन अवशीतलन क्षेत्र, निर्बाध बिजली आपूर्ति की सुनिश्चितता, सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता और सर्वाधिक जोखिम वाले वर्ग में आने वाले श्रमिकों के काम के घंटों में विशेषकर अत्यधिक तपिश वाले दिनों में बदलाव किया जाना चाहिए।"

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ गांधीनगर के निदेशक डॉक्टर दिलीप मावलंकर ने कहा :

"भारतीय मौसम विभाग भारत के 1000 शहरों के लिए अगले 5 वर्षों तक की अवधि में पूर्वानुमान परामर्श जारी कर रहा है। अहमदाबाद ऑरेंज अलर्ट वाले जोन में है और यहां तापमान 43-44 डिग्री सेल्सियस रहने की संभावना है और इसमें वृद्धि भी हो सकती है।"

उन्होंने कहा "लोगों को इन परामर्श पर गौर करने की जरूरत है। घर के अंदर रहें, खुद को जल संतृप्त रखें और गर्मी से संबंधित बीमारी के सामान्य लक्षण महसूस करने पर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जाएं। खास तौर पर बुजुर्गों और कमजोर वर्गों का ध्यान रखें, जैसा कि हमने कोविड-19 महामारी के दौरान रखा था, क्योंकि इन लोगों को घर के अंदर बैठे रहने पर भी हीट स्ट्रोक का असर हो सकता है।"

नगरों को रोजाना विभिन्न कारणों से होने वाली मौतों के आंकड़ों पर नजर रखनी चाहिए। खासकर अस्पतालों में दाखिल किए जाने वाले मरीज और एंबुलेंस को की जाने वाली कॉल के डाटा पर ध्यान देना चाहिए ताकि पिछले 5 वर्षों के डाटा से उसका मिलान किया जा सके और मृत्यु दर पर गर्मी के असर के वास्तविक संकेत को देखा जा सके।

"यह बहुत ही जल्दी आई हीटवेव है और इनकी वजह से मृत्यु दर भी आमतौर पर ज्यादा होती है क्योंकि मार्च और अप्रैल के महीनों में लोगों का गर्मी के प्रति अनुकूलन कम होता है और वे एकाएक तपिश को सहन करने के लिए तैयार नहीं होते। केंद्र और राज्य तथा नगरों की सरकारों को भी इस पर ध्यान देना चाहिए। खासतौर पर जब मौसम विभाग के अलर्ट ऑरेंज और रेड जोन की घोषणा करें तो उन्हें इस बारे में अखबारों में विज्ञापन के तौर पर चेतावनी प्रकाशित करानी चाहिए। इसके अलावा टेलीविजन और रेडियो के माध्यम से भी जनता को आगाह किया जाना चाहिए। यह एक चेतावनी भरा संकेत है कि आगामी मई और जून में क्या होने वाला है। अगर हम अभी से प्रभावी कदम उठाते हैं तो हम बड़ी संख्या में लोगों को बीमार होने और मरने से बचा सकते हैं।"

पश्चिम बंगाल में स्थानीय सरकार ने स्कूलों को यह सलाह दी है कि वे जल्द सुबह कक्षाएं शुरू करें और रिहाइड्रेशन साल्ट्स की व्यवस्था करें ताकि अगर कोई बच्चा बीमार हो जाए तो उसका समुचित उपचार हो सके। राज्य के कुछ स्कूलों ने तो ऑनलाइन क्लास शुरु कर दी है ताकि बच्चों को भयंकर तपिश में स्कूल ना आना पड़े। इसी बीच, उड़ीसा में उच्च शिक्षा की कक्षाओं को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है ।

जहां दक्षिण एशिया में इस हफ्ते तापमान के सर्वाधिक चरम पर पहुंच जाने की आशंका है, वही यह भी सत्य है वेव विश्लेषण कि सिर्फ यह उपमहाद्वीप ही इस वक्त ऐसी भयंकर गर्मी से नहीं जूझ रहा है। अर्जेंटीना और पराग्वे में भी तपिश अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। पराग्वे में आज तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की आशंका है। वहीं, चीन में 38 डिग्री और तुर्की तथा साइप्रस में 36 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाने की संभावना है। जैसे-जैसे प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन की वजह से तापमान और भी ज्यादा बढ़ेगा, खतरनाक तपिश और भी ज्यादा सामान्य बात होती जाएगी।

गुरुत्वाकर्षण लहर वेधशाला द्वारा नवीन गुरुत्वीय तरंगों की पहचान : एक विश्लेषण

अंतरराष्ट्रीय भौतिकविदों ने 1916 मे अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा की गई भविष्यवाणी के बाद पहली बार गुरुत्वाकर्षण की लहरों का पता लगाने की घोषणा की है .

इंडिगो (IndIGO) - इंडियाज ग्रैविटेशनल वेभ ऑब्जरवेटरी इनीसिएटिव को संक्षिप्त में इंडिगो कहा जाता है.

इंडिगो क्यों चर्चित रहा ?

गुरुत्वाकर्षण– लहरों का पता लगाने वाली भारतीय पहल फरवरी 2016 के दूसरे सप्ताह में सुर्खियों में रही क्योंकि अंतरराष्ट्रीय भौतिकविदों ने 1916 मे अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा की गई भविष्यवाणी के बाद पहली बार गुरुत्वाकर्षण की लहरों का पता लगाने की घोषणा की. इन लहरों का पता अमेरिका के लिविंगस्टन, लुसियाना और हैनफोर्ड, वाशिंगटन स्थित तीन LIGO (लीगो) डिटेक्टरों का उपयोग कर लगाया जाएगा.

इंडिगो क्या है?

इंडिगो खगोलविज्ञान में बहु– संस्थागत भारतीय राष्ट्रीय परियोजना के लिए उचित सैद्धांतिक और गणना सहयोग के साथ उन्नत प्रायोगिक सुविधाएं स्थापित करने की एक पहल है. स्वतंत्र भारत में वैश्विक भागीदारों की मदद से इसे बड़े पैमाने पर शुरु किए जाने वाले वैज्ञानिक परियोजनाओं में से एक माना जाता है.

LIGO– इंडिया क्या है?

LIGO– इंडिया IndIGO पहल के अधीन प्रमुख परियोजना है. लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल– वेव – ऑब्जरवेट्री या LIGO परियोजना तीन गुरुत्वाकर्षण– तरंग (जीडब्ल्यू) डिटेक्टरों का संचालन कर रहा है. इनमें से दो उत्तर पश्चिम अमेरिका में स्थित वाशिंगटन के हैनफोर्ड में है जबकि एक दक्षिण– पूर्व अमेरिका के लुसियाना के लिविंगस्टन में.

फिलहाल इन वेधशालाओं को इनके उन्नत विन्यास ( एडवांस्ड LIGO) से उन्नत बनाया जा रहा है. प्रस्तावित LIGO– इंडिया परियोजना का उद्देश्य हैन्फोर्ड से एक उन्नत LIGO– डिटेक्टर को भारत लाना है.

LIGO– इंडिया परियोजना की कल्पना LIGO प्रयोगशाला और IndIGO संघ के तीन प्रमुख संस्थानों – इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च (आईपीआर), गांधीनगर, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए), पुणे और राजा रमण सेंटर फॉर एडवानस्ड टेक्नोलॉजी( आरआरसीएटी) इंदौर के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तौर पर की गई है.

LIGO–प्रयोगशाला पूर्ण डिजाइन और डिटेक्टर के सभी मुख्य घटक मुहैया कराएगा. भारतीय वैज्ञानिक भारत में उपयुक्त स्थान पर डिटेक्टर लगाने के लिए जगह मुहैया कराएंगे और इसे चालू करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की होगी.

प्रस्तावित वेधशाला का संचालन IndIGO और LIGO–प्रयोगशाला मिल कर करेंगें और अमेरिका के LIGO डिटेक्टरों एवं वर्गो इंटरफेरोमीटर– इटली, पीसा के निकट स्थित LIGO के समान इंटरफेरोमीटर के साथ एक ही नेटवर्क स्थापित करेंगे.

LIGO– इंडिया का डिजाइन कैसे तैयार किया जाएगा ?

प्रस्तावित डिक्टेटर 4 किमी लंबाई वाले बढ़ाए गए फैब्री– पेरॉट आर्म्स के साथ एक माइकल्सन इंटरफेरोमीटर होगा और इसका उद्देश्य 30 से 800 हर्ट्ज की आवृत्ति रेंज में आधा, 10– 23 हर्ट्ज जितनी छोटी आर्म– लेंथ में हुए अंतर का पता वेव विश्लेषण लगाना है.
इसका डिजाइन अमेरिका में काम कर रहे उन्नत LIGO डिक्टेटरों के जैसा ही होगा.

इसके वैज्ञानिक लाभ क्या हैं?

• LIGO– इंडिया के वैज्ञानिक लाभ बहुत अधिक हैं. मौजूदा नेटवर्क में एक और नया डिटेक्टर जोड़ने से संभावित घटनाओं की दरों को बढ़ाएगा और संवेदनशीलता, आकाश कवरेज और नेटवर्क के ड्यूटी चक्र को बढ़ाकर नए स्रोतों से पता लगाने के आत्मविश्वास को बढ़ावा देगा.
• लेकिन LIGO– इंडिया में अभूतपूर्व सुधार आसमान में जीडब्ल्यू स्रोतों के स्थानीयकरण की क्षमता के साथ आएगा. जीडब्ल्यू स्रोतों के आकाशीय– स्थान की गणना भौगोलिक रूप से अलग किए गए डिटेक्टरों ( छिद्र विश्लेषण) से मिले आंकड़ों के संयोजन द्वारा की जाएगी.
• भारत में एक नया डिटेक्टर लाने से मौजूदा LIGO– वर्गो डिटेक्टर सरणी से भौगोलिक रूप से अच्छी तरह अलग हो चुके, स्रोत स्थानीयकरण सटीकताओं ( 5 से 10 गुना) में नाटकीय रूप से सुधार लाएगा, इसलिए हमें जीडब्ल्यू पर्यवेक्षणों को उत्कृष्ट खगोलीय उपकरण के तौर पर उपयोग करने में सक्षम बनाएगा.

भारतीय विज्ञान, उद्योग और शिक्षा पर इसका क्या प्रभाव होगा?

भारती विज्ञान पर प्रभाव

• प्रस्तावित LIGO– इंडिया परियोजना जीडब्ल्यू खगोल विज्ञान में उभरते हुए अनुसंधान सीमा में भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को प्रमुखता दिलाने में मदद करेगा.
• LIGO– इंडिया जैसी प्रमुख पहल भारत में सीमांत अनुसंधानों और विकास परियोजनाओं को प्रेरित करेगा. प्रयोग की प्रकृति आंतरिक रूप से बहुविषयक है.
• यह प्रकाशविज्ञान (ऑप्टिक्स), लेजर, गुरुत्वाकर्ण भौतिकी, खगोल विज्ञान वेव विश्लेषण और खगोल भौतिकी, ब्रह्मांड विज्ञान, अभिकल्पनात्मक विज्ञान (कम्प्यूटेशनल साइंस), गणित औऱ इंजीनियरिंग की विभिन्न शाखाओं के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को एक साथ लाएगा.
• बहु–घटक खगोल विज्ञान की क्षमता को पूरी तरह से समझने के लिए LIGO– इंडिया परियोजना भारत की कई खगोल परियोजनाओं में शामिल होगा. संभावित सहयोगियों में एस्ट्रोसैट परियोजना, भारत की न्यूट्रिनो वेधशाला में भविष्य में किए जाने वाले उन्नयन और ऑप्टिकल/ रेडियो टेलिस्कोप शामिल हैं.

उद्योग पर प्रभाव

परियोजना की उच्च इंजीनियरिंग जरूरतें (जैसे दुनिया की सबसे बड़ी अल्ट्रा– हाई वैकुम सुविधा) भारतीय उद्योगों के लिए शैक्षणिक अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से अभूतपूर्व अवसर प्रदान करेगा.

LIGO– परियोजना ने अमेरिका और यूरोप में प्रमुख उद्योग– शैक्षणिक अनुसंधान भागीदारियों में मदद की है और कई महत्वपूर्ण तकनीकि उपउत्पादों का उत्पादन किया है. LIGO– इंडिया भी भारतीय उद्योग के लिए ऐसे ही अवसर मुहैया कराएगा.

शिक्षा और लोगों तक पहुंच

• भारत में एक अत्याधुनिक परियोजना रुचि पर स्थानीय फोकस का काम कर सकता है और छात्रों एवं युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित कर सकता है.
• LIGO– इंडिया परियोजना में उच्च प्रौद्योगिकी उपकरण शामिल हैं और इसका नाटकीय पैमाना रुचि को प्रेरित वेव विश्लेषण करेगा और युवा छात्रों को प्रयोगात्मक भौतिकी एवं इंजीनियरिंग भौतिकी को करिअर विकल्प के तौर पर चुनने के लिए प्रोत्साहित करेगा.
• भौतिकी तक 'बहु– स्पेक्ट्रल' पहुंच जैसा कि इसने अन्य देशों में किया है, इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली और युवा अनुसंधानकर्ताओं और छात्रों को आकर्षित एवं प्रेरित करेगा.
• यह वेधशाला इस पैमाने, अंतरराष्ट्रीय प्रासंगिकता और प्रौद्योगिकी नवाचार वाला भारत में उपलब्ध बहुत कम अनुसंधान सुविधाओं में से एक होगा जहां आम जनता और छात्र जा सकते हैं.

IndIGO की वर्तमान स्थिति क्या है?

वर्ष 2009 से IndIGO गुरुत्वाकर्षीय तरंग खोगल वित्रान के लिए एशिया– प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण गुरुत्वाकर्षण– तरंग वेधशाला को साकार करने में भारतीय भागीदारी पर रोडमैप और चरणबद्ध रणनीति तैयार करने में लगा है.

अक्टूबर 2011 में LIGO– इंडिया को तत्कालीन योजना आयोग द्वारा विचाराधीन मेगा परियोजनाओं की सूची में शामिल किया गया था.
भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला क्या है?

IndIGO कि भांति ही भारतीय न्यूट्रिनो वेधशाला (INO) परियोजना एक अन्य मेगा परियोजना है. यह न्यूट्रिनो कहे जाने वाले अल्पकालिक कण का पता लगाने के लिए प्रस्तावित भूमिगत वेधशाला है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2015 में इस वेव विश्लेषण परियोजना को मंजूरी दे दी थी. प्रयोगशाला तमिलनाडु में बनाई जाएगी. हालांकि पर्यावरण पर इसके प्रभावों को देखते हुए कार्यकर्ता समूहों के विरोध की वजह से यह परियोजना एक वर्ष से अधिक समय से रुकी पड़ी है.

गुरुत्वाकर्षण की लहरों का पता लगाने से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक

30 से भी अधिक वर्षों से शोध में लगे भारतीय वैज्ञानिकों ने हाल ही में खोज किए गए गुरुत्वाकर्षण तरंगों में काफी योगदान दिया है. इनमें से सी वी विश्वश्वरा, बालाअय्यर, आनंद सेनगुप्ता और संजीव मित्रा उल्लेखनीय हैं.

सी वी विश्वेश्वरा और बालाअय्यर आइंस्टीन के समीकरण को हल करने वाले दुनिया के पहले वैज्ञानिकों में से एक हैं. इस समीकरण को टकराने वाले ब्लैक होल कैसे दिखते हैं, कि व्याख्या करने और वे कौन सा टेल– टेल (tell-tale) संकेत देते हैं, को प्राप्त करने के लिए एक गणितीय मॉडल को हल किया था.

जबकि आनंद सेनगुप्ता ने ऐसा तरीका विकसित किया जो 3,000 किमी दूर स्थित दोनों LIGO– डिटेक्टर एक ही गुरुत्वाकर्षण तरंग को सुनिश्चित करता है. संजीब मित्रा ने विभिन्न तारों से निकलने वाले गुरुत्वाकर्षण तरंगों को अलग करने का तरीका खोजा.

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साइटमैटर का मुफ्त संस्करण आपकी साइट के लिए बहुत अच्छे आंकड़े और रिपोर्ट प्रदान करता है। यह केवल पहले 100 आगंतुकों की जानकारी प्रदान करता है, और उसके बाद, यह रीसेट और शुरू होता है। लेकिन अगर आपको उससे अधिक जानकारी चाहिए, तो आप साइटमैटर के भुगतान संस्करण में अपग्रेड कर सकते हैं। अन्य गैर होस्टेड एनालिटिक्स टूल की तरह, साइटमैटर आपकी साइट के प्रत्येक पृष्ठ पर एक स्क्रिप्ट डालने से काम करता है। यह आपको वास्तविक समय यातायात देता है लेकिन कुछ लोग गोपनीयता निहितार्थों के बारे में चिंतित हैं। अधिक "

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        ASTM E 21
        कमरे के टेंपरेचर पर प्रभाव परीक्षण
        उप शून्य टेंपरेचर पर प्रभाव परीक्षण -70डिग्री सेल्सियस तक
        खस्ता परीक्षण उपकरण तक 216 फुट-एलबीएस
        Izod सह charpy प्रभाव परीक्षण उपकरण 300जौल तक
        Izod परीक्षण उपकरण 164जौल तक
        ASTM E 23
        कठोरता परीक्षण
        (बैनल-3000 कि.ग्रा/रॉकवेल कठोरता 150 कि.ग्रा/विकर्स कठोरता 50 कि.ग्रा
        ASTM (E10/E92/E18)
        सूक्ष्म कठोरता ASTM E 384
        फ्रैक्चर कठोरता (UTM 100KN) ASTM E 399
        रेंगना और तनाव टूटना
        20KN लोड-अधिकतम तापमान 1050 डिग्री सेल्सियस के साथ 48 मशीनें
        2 मशीनें 30KN लोड-अधिकतम तापमान 1150 डिग्री सेल्सियस
        ASTM E 150, E 139
        कम चक्र थकान (LCF)
        अक्षीय विधा ( वेव फॉर्म त्रिकोणीय, साइनसोइडल, ट्रेपोज़ॉइडल )
        कमरे का तापमान और उच्च तापमान
        ASTM E606
        उच्च चक्र थकान (HCF)
        झुकने मोड
        (3000 आरपीएम to 10000 आरपीएम)
        ASTM E466
        BS 3518
        एरिकसेन कप परीक्षक
        मोटाई : 0.1 to 2.0 मि.मी, चौड़ाई : 70 to 90 मि.मी
        IS 1756
        ASTM E643

        मैटलोग्राफिक

        मेटलोग्राफी सेवाओं में नमूना तैयार करना, ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी, इन-सीटू मेटलोग्राफी, सूक्ष्म विश्लेषण द्वारा चरण विश्लेषण शामिल हैं।

        सूक्ष्म संरचना (अनाज का आकार)
        (तस्वीर के साथ सूक्ष्म संरचना)
        ASTM E112
        स्थूल संरचना ASTM E 381 & A 604(स्टील्स के लिए)
        AMS 2380 टाइटेनियम मिश्र धातुओं के लिए
        शामिल किए जाने की रेटिंग ASTM E 45 विधि -डी
        आईजीसी परीक्षण ASTM A 262 अभ्यास-ए
        परत की मोटाई सूक्ष्म विधि

        रासायनिक विश्लेषण

        हमारे रासायनिक प्रयोगशाला में एक्स-रे, परमाणु अवशोषण, ऑप्टिकल उत्सर्जन और अल्ट्रा-वायलेट दृश्यमान स्पेक्ट्रोमेट्री और गैस विश्लेषण, गीला रसायन विज्ञान भी कार्यरत है। धातुओं और उनके मिश्र धातुओं के नियमित विश्लेषण के लिए ऑप्टिकल एमिशन स्पेक्ट्रोमेट्री (OES या आर्क स्पार्क)। ओईएस को विशेष रूप से आयरन, कोबाल्ट, टाइटेनियम और निकेल-आधारित मिश्र (एएसटीएम ई 353) में गुणवत्ता की मांगों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

        कार्बन, सल्फर, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और स्टील और टाइटेनियम में नाइट्रोजन सामग्री अक्रिय गैस संलयन तापीय चालकता विधि (ASTM E1019 और ASTM E1447) लेको इंस्ट्रूमेंटेशन का उपयोग करके निर्धारित की जाती है।

        रासायनिक संरचना विश्लेषण भी एक्स-रे प्रतिदीप्ति स्पेक्ट्रोमेट्री, पीएमआई, अर्ध-मात्रात्मक विश्लेषण का उपयोग करते हुए मोबाइल ऑप्टिकल उत्सर्जन स्पेक्ट्रोमेट्री का उपयोग किया जाता है।

        जहरीली होती जा रही दिल्ली-एनसीआर की हवा, गर्मी बढ़ने से ओजोन गैस ने भी तोड़ डाले सारे रिकॉर्ड

        ओजोन गैस (Ozone Gas)तब बढ़ती है, जब दिनभर हीट वेव चले. ओजोन गैस की हवा में मौजूदगी अधिकतम 8 घंटे का औसत 71 भाग प्रति बिलियन (PPB) या उससे अधिक होती है.

        दिल्ली में बढ़ रही ओजोन गैस

        दिल्ली में बढ़ रही ओजोन गैस

        तेजश्री पुरंदरे

        • नई दिल्ली,
        • 12 जून 2022,
        • (Updated 12 जून 2022, 5:43 PM IST)

        दिल्ली में तापमान 46 डिग्री के पार

        दिल्ली में लगातार बढ़ते तापमान के चलते पारा 46 डिग्री के पार हो गया है. गर्मी ही नहीं बल्कि हवा में मौजूद ओजोन गैस ने भी सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. दरअसल, सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (CSE) ने एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें यह सामने आया है कि 122 सालों में गर्मियों का रिकॉर्ड टूटने के बाद इस साल की गर्मी के कारण ओजोन की मात्रा में भी बढ़ोतरी हुई है, जिससे दिल्ली-एनसीआर की हवा अधिक जहरीली हो गई है.

        दिल्ली-एनसीआर में रिसर्चस ने 58 ऑफिशियल स्टेशन से डेटा हासिल किया और विश्लेषण के जरिए प्रत्येक स्टेशन पर प्रदूषण में कितनी बढ़ोतरी हुई इस पर भी पड़ताल की. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अविकल सोमवंशी ने रिसर्च पेपर तैयार किया है. इसका कारण लगातार गर्मी का बढ़ना है. हीट वेव की वजह से ओजोन गैस काफी मात्रा में बढ़ गई है.

        हीट वेव से हवा में घुल रही ओजोन गैस

        अविकल सोमवंशी बताते हैं कि ओजोन गैस तब बढ़ती है, जब दिनभर हीट वेव जैसी समस्या हो. ओजोन गैस की हवा में मौजूदगी अधिकतम 8 घंटे का औसत 71 भाग प्रति बिलियन (PPB) या उससे अधिक होती है. स्टडी के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में इस गर्मी के लगभग सभी दिनों में ओजोन में बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

        ओजोन गैस से होने वाली परेशानियां

        इस बार ओजोन का खराब स्तर चिंता का विषय है, क्योंकि यह आपके स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकती है जिससे बीमारियों का खतरा रहता है. ओजोन को हवा द्वारा लंबी दूरी तक पहुंचाया जा सकता है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में भी खराब ओजोन स्तर का अनुभव किया जा सकता है. ओजोन युक्त हवा में सांस लेने से लोगों को सबसे अधिक खतरा होता है, जिसमें अस्थमा की बीमारी वाले लोग, बच्चे, बूढ़े और ऐसे लोग शामिल होते हैं जो घर से बाहर ज्यादा रहते हैं.

        क्या है ग्राउंड-लेवल ओजोन गैस

        ग्राउंड-लेवल की ओजोन सीधे हवा में नहीं मिलती लेकिन, यह नाइट्रोजन और वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंडके ऑक्साइड के बीच केमिकल रिएक्शन से बनती है. यह तब बनती है जब कार, पावर प्लांट, औद्योगिक बॉयलर, रिफाइनरी और अन्य स्रोतों से मिलकर सीधा सूरज की किरणों से मिलते हैं और ओजोन बनाते हैं.

        औसतन देखा जाए तो, 16 स्टेशनों ने इस मार्च और अप्रैल में दैनिक मानक को पार कर लिया है, जो पिछले साल मार्च और अप्रैल के मुकाबले 33 प्रतिशत ज्यादा हैं.

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