सोने के दाम किसपर निर्भर?

सोना खरीदने का मूड बना रहे हैं तो इन बातों का रखें खास ध्यान
अक्सर देखा जाता है कि लोग धनतेरस, अक्षय तृतीया, शादी के सीजन या फेस्टिवल के समय सोने के गहनों की ज्यादा खरीददारी करते हैं। इस दौरान सोने के दाम भी ज्यादा होते हैं और डिजाइन के हिसाब से मेकिंग चार्ज भी ज्यादा होते हैं। जिसका फायदा उठाकर ज्वेलर्स भी ग्राहकों को मिलावटी या नकली सोना थमा देते हैं। अगर आप सोने का सामान खरीदने की प्लानिंग कर रहे हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
1 – सबसे पहले ये पता करें कि आपके शहर में सोने का दाम क्या चल रहा है। ये पता करने के लिए अखबार देख सकते हैं, या फिर इस वेबसाइट पर जाकर अपने शहर में सोने का भाव पता कर सकते हैं।
2 – सोने की जूलरी खरीदने से पहले उसके वजन और मेकिंग चार्ज के बारे में जरूर पता कर लें। क्योंकि हर जगह ये आपको अलग ही मिलेंगे। दरअसल, जूलरी की डिजाइन पर ही मेकिंग चार्ज भी निर्भर करता है। याद रखें कि आप मेकिंग चार्जेस पर मोल-भाव कर सकते हैं।
3 – तय करें कि आपको कितने कैरेट गोल्ड का सामान खरीदना है, क्योंकि 24 कैरेट, 22 कैरेट और 18 कैरेट सोने में दाम का भी अंतर हो जाता है।
4 – ज्यादा काम वाले गहनों के सोने में ज्यादा मिलावट हो सकती है, क्योंकि जौहरी सोने को और लचीला बनाने के लिए उसमें ज्यादा तांबा मिलाते हैं। इसमें प्रति ग्राम सोने की कीमत नहीं बढ़ती है, लेकिन इसमें मेकिंग चार्ज ज्यादा लगता है।
5 – सोने की कीमत, वरायटी, वजन, शुद्धता आदि का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। खरीदारी के समय ही रिटर्न पॉलिसी और प्रमाण पत्र की प्रामाणिकता भी समझें।
6 – असली सोने की पहचान के लिए आप शोरूम में मौजूद गोल्ड स्केल या कैरेट मीटर का उपयोग करें और हमेशा हॉलमार्क देखकर ही सोना खरीदें।
7 – हमेशा भरोसेमंद या ब्रांडेड ज्वेलर्स से ही सोना खरीदें, ताकि बाद में आपको किसी तरह की परेशानी ना हो।
8 – अगर आप वाइट गोल्ड की जूलरी ले रहे हैं तो निकेल या प्लैटिनम मिक्स के बजाय पैलेडियम मिक्स जूलरी लेना बेहतर होगा। निकेल या प्लैटिनम मिक्स वाइट गोल्ड से स्किन एलर्जी होने की शिकायत रहती है।
24 कैरेट, 22 कैरेट,18 कैरेट सोने में क्या है अंतर
24 कैरेट = 100% शुद्ध सोना (99.9%)
22 कैरेट = 91.7% सोना
18 कैरेट = 75.0% सोना
14 कैरेट = 58.3% सोना
12 कैरेट = 50.0% सोना
10 कैरेट = 41.7% सोना
आपको बता दें कि 24 कैरेट सोने का मतलब है कि शुद्ध सोने की बात हो रही है। 24 कैरेट सोने में सोने की मात्रा 99.9 फीसदी रहती है। सोने की शुद्धता का पैमाना 24 कैरेट को ही माना गया है, क्योंकि इसमें शुद्ध सोने की मात्रा 99.9% है। शुद्ध सोने की पहचान है कि वह बहुत ज्यादा ही लचीला होता है, इसलिए इससे गहने नहीं बनाए जाते हैं। गहने बनाने के लिए शुद्ध सोने में कुछ मिलावट होना जरूरी होता है, इसीलिए 22 कैरेट गोल्ड के ही जेवर ज्यादा मिलते हैं। 24 कैरेट सोने के गहने बहुत कम बनते हैं या बनाए ही नहीं जाते हैं।
Anju Sharma : 10वीं में, फेल 12वीं, में फेल फिर भी बन गई IAS
IAS Success Story : सिविल सेवा की परीक्षा को लाखों लोग हर साल भरते हैं लेकिन कुछ ही लोग इस सपने को पूरा कर पाते हैं आइए आज हम आपको बताने जा रहें हैं 10वीं व 12वीं फेल Anju Sharma की कहानी पूरी जानकारी के लिए खबर को पढ़ें।
सिविल सेवा परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षा मानी जाती है। हर साल लाखों उम्मीदवार आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखते हैं। हालांकि, केवल कुछ ही लोग अपने सपने को हकीकत में बदल पाते हैं। ऐसी ही एक कहानी है अंजू शर्मा कि जिन्होंने अपनी असफलताओं से सीख लेते हुए यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल की है।
UPSC Success Story: 10वीं और 12वीं में हुईं फेल
एक इंटरव्यू में अंजू शर्मा ने बताया था कि वह 10वीं केमिस्ट्री प्री बोर्ड की परीक्षा में फेल हो गई थी। हालांकि, अन्य विषयों में उन्होंने डिस्टिंक्शन के साथ पास किया था। इसके बाद 12वीं में वह economics के पेपर में भी फेल हो गई थीं। इस दौरान अंजू की मां ने उनका भरपूर सहयोग किया था। अंजू ने भी इस घटना से सबक लिया कि अंतिम समय की पढ़ाई पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
IAS Anju Sharma: 22 साल की उम्र में पाई सफलता
अंजू ने जयपुर से BSc and MBA की डिग्री हासिल की है। उन्हें कॉलेज में स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया गया था। इस दौरान वह सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में भी लगी रहीं। अंजू ने महज 22 साल की उम्र में civil services exam के पहले प्रयास में सफलता हासिल कर ली थी। इस सफलता से उन्होंने न केवल अपना बल्कि घर वालों का भी नाम रोशन कर दिया था।
Anju Sharma Success Story: वर्तमान में इस पद पर कार्यरत
Anju Sharma ने साल 1991 में राजकोट में assistant collector के पद से अपने करियर की शुरुआत की थी। इसके अलावा उन्होंने गांधीनगर में जिला कलेक्टर सहित अन्य सरकारी पदों पर अपनी सेवाएं दी हैं। वर्तमान में अंजू शर्मा सरकारी शिक्षा विभाग (उच्च और तकनीकी शिक्षा) सचिवालय, गांधीनगर में प्रधान सचिव के पद पर कार्यरत हैं।
इन देशों में सीधे नल से आता है Pure water, जानें क्या है इसके पीछे का कारण
नई दिल्ली । जल ही जीवन है. जल है तो कल है. अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा. पानी से पानी तेरा रंग कैसा. ऐसी कई सदाबहार बातें आपने भी सुनी होंगी. पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कैच द रेन (Catch The Rain) अभियान की शुरुआत की है. आइए आपको उन देशों के बारे में बताते हैं जहां घर के नल में डायरेक्ट आने वाला पानी बेहद साफ और शुद्ध है. यहां पर एशियाई और अफ्रीकी देशों की तरह पीने के पानी का संकट नहीं है. यानी कहा जा सकता है कि यहां अलग से महंगा वाटर प्यूरीफायर लगवाने और उसका सालाना मेंटिनेंस खर्च उठाने की जरूरत नहीं है.
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बेहतरीन पानी सोने के दाम किसपर निर्भर? की खोज
नल से आने वाली पानी की शुद्धता इस पर निर्भर है कि वो कहां से आ रहा है. इसके बाद उस पानी को किस तरह पीने लायक सोने के दाम किसपर निर्भर? बनाने के लिए ट्रीटमेंट दिया गया. सबसे पहले बात न्यूजीलैंड (New Zealand) की जहां का पानी एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे शुद्ध और सुरक्षित माना जाता है. इस देश का अपना सबसे अलग एडवांस फिल्ट्रेशन सिस्टम (Advanced Filtration System) है.
भौगोलिक स्थिति का फायदा
अब बात यूरोप के आइसलैंड (Iceland) की जहां पर 95% पानी ऐसा है, जो आज तक प्रदूषण के संपर्क में नहीं आया. यहां कई किलोमीटर के दायरे में ग्लेशियर हैं. यहां की खास बात यानी यूएसपी ये भी है कि यहां आइसलैंड में पानी को साफ करने के लिए क्लोरीन का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि इस देश में सिर्फ यूवी ट्रीटमेंट किया जाता है.
जर्मनी में बेहतर स्थिति
यूरोप में ही अगला देश है जर्मनी (Germany) जहां की वाटर ट्रीटमेंट कंपनियां दुनिया में मशहूर हैं. यहां वाटर क्वालिटी को लेकर हुए एक शोध की रिपोर्ट में पाया गया था कि सिर्फ 0.01 % सैंपल ही क्वालिटी मानकों पर खरा नहीं उतरा.
स्विटजरलैंड का पानी भी उम्दा
स्विट्जरलैंड (Switzerland) में भी डायरेक्ट नल से शुद्ध पानी मिलता है. सरकारी डेटा के मुताबिक यहां शुद्ध पानी बारिश और ग्लेशियरों के जरिये मुहैया कराया जाता है. यहां हर घर के नल से आने वाले पानी की क्वालिटी मिनरल वॉटर जैसी बताई जाती है.
नॉर्वे की बात है निराली
इस कड़ी में अगला देश नॉर्वे (Norway) है. यहां कई झीलों के साथ 4 प्रमुख बड़ी नदियां हैं. यूरोप के इस देश में भी बर्फ के ग्लेशियर भी हैं. नॉर्वे में 90% नल का पानी नेचुरल सोर्स से सप्लाई कराया जाता है. पीने के साफ पानी की आपूर्ति कराने के मामले में इस हिसाब से यूरोप अन्य महाद्वीपों की तुलना में बेहतर माना जा सकता है.
बदलना चाहते हैं अपनी किस्मत? तो आज ही लगाएं सिर्फ एक ये घड़ी, होने लगेगी धन की वर्षा
नई दिल्ली। हमारे जीवन में बहुत सी चीजें हमारे कर्म के अलावा समय पर भी निर्भर होती है समय अगर अच्छा चल सोने के दाम किसपर निर्भर? रहा हो तो हमारे जीवन में बहुत चीजें अच्छी होती है, वही अगर थोड़ा सा भी समय बदलता है तो हमारे अच्छे से अच्छे काम बिगड़ने लग जाते हैं, कई बार समय का ही चक्र होता है जिसके चलते बिगड़ते काम भी बनने लगते हैं।
ऐसा हमेशा देखा गया है कि लोग अपने घर की सजावट और आर्किटेक्ट का ध्यान में रखते हुए घड़ी, जो रोजाना इस्तेमाल में आने वाली वस्तु है उसे नजरअंदाज करते हैं और सजावट के चलते कहीं भी लगा देते हैं, वो भी बिना सही दिशा के ज्ञान के। घड़ी को कहीं पर लगाने से जीवन में बहुत सी परेशानी आने लगती है ऐसे में आइए जानते हैं कि वास्तु शास्त्र में घड़ी को किस दिशा में लगाना चाहिए।
वास्तु शास्त्र में यह कहा गया है कि दिशा का बहुत महत्व हैबहुत महत्व बताया गया है। किसी भी विषय के बारे में पूरी और विशेष जानकारी होना ही उसे उसका पूरा लाभ दे सकती है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक कमरे में दीवार पर लगी घड़ी आपको हमेशा उत्तर पूर्व और पश्चिम दिशा में लगाना चाहिए। कभी भी दक्षिण दिशा में घड़ी नहीं लगाना चाहिए, धार्मिक ग्रंथों का मानना है कि धन के देवता कुबेर उत्तर दिशा और देवराज इंद्र पूर्व दिशा में रहते हैं ऐसे में घड़ी को इन दोनों दिशा में रखने से, घरवालों के आर्थिक तरक्की के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिशा में घड़ी लगाने से परिवार में सुख शांति समृद्धि और संपन्नता सदैव बनी रहती है।
इन बातों का भी आपको खास ध्यान रखना चाहिए, वास्तु शास्त्र में यह कहा गया है कि हमेशा घर में गोलाकार की घड़ी लगानी चाहिए।
फिएट करेंसी के नुकसान और फायदे क्या हैं?
आपने शायद अपने दादा-दादी को अक्सर यह कहते सुना होगा कि उनके बचपन में 25 पैसे में एक या दो किलोग्राम चावल मिल जाता था। जब आपने अपने माता-पिता से पूछा कि उनके बचपन में एक किलो चावल की कीमत कितनी थी, तो वे बताते थे कि उनके समय में भी दोे किलो चावल दोे रुपये में तो मिल ही जाता था।
अब हमारा-आपका जमाना है जब एक या दो किलो चावल एक-दो रुपयेे में तो क्या, कई बार 50 रुपये के नोट में भी नहीं मिलता। इतना ही नहीं, हमारे पिताजी या दादाजी को सामान खरीदने के लिए सिक्के या नोट रखने पड़ते थे, लेकिन हम भुगतान डिजिटल माध्यम से भी कर सकते हैं।
वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें समय के साथ बढ़ती हैं। हालांकि यह इसलिए नहीं होता है क्योंकि सर्विस या उत्पाद का मूल्य बढ़ रहा है, बल्कि हमारी यह हमारी करेंसी या मुद्रा के मूल्य के कारण होता है। मुद्रा का मूल्य महंगाई पर भी निर्भर करता है। हालांकि इस सोने के दाम किसपर निर्भर? लेख में हम महंगाई पर चर्चा नहीं करेंगे।
वैसे भी, क्या आपने कभी सोचा है कि कैसे एक प्रोडक्ट यानी उत्पाद या सर्विस यानी सेवा की कीमत ने दशकों में कैसे अलग-अलग आकार लिया है? उदाहरण के लिए, 25 पैसे के सिक्के आकार में छोटे और गोल होते थे। दूसरी ओर, दो रुपये के सिक्के भी गोल, मगर आकार में बड़े होते हैं। वहीं, जब 50 रुपये की बात आती है, तो अमूमन वे गोलाकार सिक्के नहीं होते हैं, बल्कि क्रेडिट कार्ड की तरह कागज के आयताकार टुकड़े होते हैं।
चलिए, यहां हम यह चर्चा करते हैं कि करेंसी या मुद्राएं कैसे विकसित हुईं और आज भी उनका अस्तित्व किस तरह बरकरार है। हम यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे एक कागज का टुकड़ा मौद्रिक मूल्य धारण कर सकता है और यह धारक को वह मूल्य किस तरह देता है।
फिएट करेंसी के बारे में
फिएट करेंसी वह मुद्रा है जिसका कोई आंतरिक मूल्य नहीं है लेकिन सरकार द्वारा लीगल टेंडर यानी कानूनी मुद्रा के रूप में स्वीकार किया जाता है। ऐतिहासिक रूप से, कागज की मुद्रा को सोने और चांदी जैसी कीमती धातुओं का समर्थन मिलता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कागजी मुद्रा के मूल्य के बराबर सोने या चांदी जैसी बहुमूल्य सोने के दाम किसपर निर्भर? धातुएं सुरक्षित रखी जाती हैं। होती हैं, लेकिन फिएट करेंसी के लिए किसी तरह की धातु का समर्थन जरूरी नहीं है, यह पूरी तरह से सरकार की विश्वसनीयता पर निर्भर करती है।
फिएट करेंसी का आविष्कार कमोडिटी और कागज या सिक्के की मुद्राओं के विकल्प के रूप में किया गया था। कमोडिटी मनी को मूल्य सोने और चांदी जैसी कीमती धातुओं से मिलता है, जबकि प्रतिनिधि मुद्रा का मूल्य उसकी मांग और आपूूर्ति पर निर्भर करता है। चीन ने सन 1,000 यानी आज से लगभग 1,000 वर्ष पहले के आसपास पहली फिएट करेंसी पेश की, और यह कुछ ही समय में दुनियाभर में फैल गई।
फिएट करेंसी को दुनिया भर में प्रमुखता तब मिली जब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने 1971 में गोल्ड स्टैंडर्ड को हटा दिया था। अधिकांश देश जालसाजी और मुद्रा आपूर्ति पर कड़े नियंत्रण के साथ फिएट पेपर करेंसी का उपयोग करते हैं।
फिएट करेंसी के फायदे
फिएट करेंसी के कई फायदे हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख ये हैं:
1. कमोडिटी और प्रतिनिधि धन व्यापार चक्र और अंतर्निहित परिसंपत्तियों के दाम में उतार-चढ़ाव के कारण अस्थिर होते हैं। दूसरी तरफ फिएट करेंसी का एक स्थापित सुसंगत मूल्य होता है।
2. किसी देश का केंद्रीय बैंक अपनी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुसार कागजी मुद्रा का उत्पादन, भंडारण और रखरखाव कर सकता है। इससे उन्हें मुद्रा आपूर्ति, ब्याज दरों और बाजार में तरलता पर पूरा नियंत्रण प्राप्त होता है। फिएट करेंसी दुनियाभर में मूल्यवान और व्यापक रूप से स्वीकृत नकदी होती है क्योंकि यह विभिन्न करेंसी एक्सचेंज और पेमेंट नेटवर्क द्वारा स्वीकार की जाती है। चूंकि सरकारों का फिएट मनी की आपूूर्ति पर पूरा नियंत्रण होता है और वे अस्थिर वस्तुओं पर आधारित नहीं होते हैं, यह देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखती है।
फिएट करेंसी के नुकसान
फिएट करेंसी के संभावित नुकसान के बारे में नीचे उल्लेख किया गया है:
1. फिएट करेंसी को व्यापक रूप से ज्यादा स्थिर करेंसी माना जाता है। विशेष रूप से आर्थिक मंदी के मामलोें में आलोचकों का तर्क है कि करेंसी सीमित सप्लाई के साथ सोने पर आधारित होती है जो बेहतर स्थिरता देती है, लेकिन इसकी तुलना में फ़िएट करेंसी ज्यादा सप्लाई देती है।
2. जब किसी देश की अर्थव्यवस्था मंदी का सामना करती है, या लोगों का सरकार पर से विश्वास उठ जाता है, तो फिएट करेंसी का मूल्य शून्य हो सकता है।
3.फिएट करेंसी का उत्पादन या प्रिंट करने की शक्ति सरकार के पास होती है। इसलिए यह नागरिकों की क्रय शक्ति को चुरा सकती है, भले ही वे करों के भुगतान से इन्कार कर दें।
ऐसे उदाहरण के दौरान, सरकार फिएट करेंसी की सप्लाई को थोड़ा बढाएगी और फिर जिस चीज की उसे जरूरत है वह उसे खरीद लेगी। हालांकि पूंजी प्रवाह बढ़ते ही वह ग्राहकों को सतर्क कर देगी।
सरकार प्रचलन में नहीं है या क्षतिग्रस्त मुद्रा को बदलने के लिए नए बैंक नोट जारी करने के लिए मजबूर है। कभी-कभी, यह आवश्यकता से ज्यादा का धन बनाता है जिससे फिएट करेंसी के मूल्य का नुकसान होता है।
फिएट करेंसी बनाम क्रिप्टोकरेंसी
जब दुनिया क्रिप्टोकरेंसी और नॉन फंजिबल टोकन (एनएफटी) जैसी डिजिटल परिसंपत्तियों द्वारा संचालित नए युग की अर्थव्यवस्था को अपनाने के कगार पर खड़ी है, तो उन्हें फिएट करेंसी के साथ तुलना करना अच्छा होगा।जैसा कि आपने देखा, फिएट करेंसी एक कानूनी मुद्रा है जिसे वैध माना जाता है। इसे सरकार और दुनियाभर के लोगों द्वारा मूल्यवान माना जाता है। दूसरी ओर, क्रिप्टोकरेंसी एक ऐसी विकेंद्रीकृत मुद्रा है जिसे किसी भी सरकार या सक्षम केंद्रीय प्राधिकार का समर्थन हासिल नहीं है। वैसे, फिएट और क्रिप्टोकरेंसी दोनों किसी अंतर्निहित संपत्ति पर आधारित नहीं हैं।
फिर भी, क्रिप्टोकरेंसी ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करती है, जिससे असामाजिक तत्वों द्वारा जालसाजी या असीमित प्रिंटिंग लगभग असंभव हो जाती है। एक बात यह भी है कि क्रिप्टो मुद्राएं बेशक अत्यधिक अस्थिर हैं, लेकिन इनमें उच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान की गारंटी होती है। कुछ देशों में हाल ही में इस पर व्यापक बहस शुरू हुई है कि क्रिप्टोकरेंसी को कानूनी वैधता प्रदान की जाए या नहीं। यह एक संकेत है कि वे जल्द ही हमारे वित्तीय लेनदेन में फिएट करेंसी को बदल सकती हैं।
निष्कर्ष
फ़िएट करेंसी क्रय शक्ति के रूप में वित्त की दुनिया में आया और बार्टर सिस्टम की अक्षमताओं को खत्म किया। यह हमें आवश्यक उत्पादों या सेवाओं के लिए वस्तुओं का आदान-प्रदान किए बिना हमें जो चाहिए उसे खरीदने की अनुमति देता है।
जैसा कि आपने देखा, फिएट करेंसी सप्लाई पर सरकारों का पूरा नियंत्रण है। इसका कोई आंतरिक मूल्य नहीं है। इसका मूल्य बाजार की आपूर्ति और मांग द्वारा निर्धारित की जाती है। हालांकि, फ़िएट करेंसी सप्लाई पर सरकारों के पूरे नियंत्रण के बावजूद इसके उत्पादन या प्रिंटिंग के समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फ़िएट करेंसी का मूल्य हद से ज्यादा गिर सकता है, जो अत्यधिक महंगाई को जन्म दे सकता है।
किसी देश की अर्थव्यवस्था की स्थिरता, शासन, और ब्याज दरों पर इन कारकों का प्रभाव फिएट करेंसी के मूल्य को प्रभावित करता है। राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता फिएट करेंसी के मूल्य को कमजोर और उत्पादों व सेवाओं की लागत में वृद्धि कर सकती है।
संक्षेप में कहें, तो फिएट मनी अपने देश की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता में देश के नागरिकों के दृढ़ विश्वास पर क्रय शक्ति के भंडारण माध्यम के रूप में सफलतापूर्वक चलती है। यह भी उनके विश्वास पर आधारित है कि फिएट मुद्रा उनके सभी वित्तीय लेनदेन को संतुष्ट करती है। सोने के दाम किसपर निर्भर? यदि वह लंबे समय से चला आ रहा विश्वास खो जाता है, तो यह फिएट करेंसी के अंत का प्रतीक है।
(लेखक अल्फा कैपिटल के पार्टनर हैं।
अनुवाद: नितिका अहलुवालिया)