डॉलर ही क्यों

डॉलर के मुकाबले लगातार क्यों गिर रहा है रुपया, सरकार क्या कर रही समाधान?
बीते कई दिनों से रुपया डॉलर के मुकाबले अपने निम्नतम स्तर पर बना हुआ है। कल रुपया डॉलर के मुकाबले 82.26 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया था। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के द्वारा नीतिगत दरों में वृद्धि के कारण डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है जिसके फलस्वरूप पूरी दुनिया के मुद्रा में गिरावट देखी जा रही है।
महंगाई की मार
डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से महंगाई बढ़ रही है। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी कर रही है। इसके कारण आर्थिक गतिविधियां में भी मंदी देखी गई है। लोगों के रोजगार पर संकट दिख रहा है और बेरोजगारी बढ़ रही है। बाजार के स्थिर होने से मांग भी कम है जिसके कारण कारखानों में उत्पादन कम हो रहा है। इससे कंपनियों को घाटा का सामना करना पड़ सकता है।
डॉलर में तेजी
शीर्ष अमेरिकी बैंक के द्वारा लगातार नीतिगत दरों में वृद्धि के कारण दूसरे देशों की करेंसी में गिरावट आई है। इस साल जून और जुलाई में फेडरल रिजर्व ने दो बार नीतिगत दरों में वृद्धि की है। शीर्ष अमेरिकी बैंक ने मई में 1981 के बाद सबसे अधिक महंगाई दर की वृद्दि के बाद यह फैसला लिया। मई में अमेरिका में महंगाई दर 8.6 प्रतिशत पहुच गया था। हालांकि अगस्त में इसमें थोड़ी कमी दिखी जब महंगाई दर 0.3 प्रतिशत कम होकर 8.3 पर पहुंच गई।
रिजर्व बैंक कर रहा है प्रयास
डॉलर के मुकाबले रुपये में जारी गिरावट का कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक कोशिश कर रहा है। सितंबर में रिजर्व बैंक ने महंगाई को कम करने के उद्देश्य से रीपो रेट में 50 आधार अंकों की वृद्धि की थी। इससे पहले भी मई में रीपो रेट में 190 आधार अंकों की वृद्दि की गई थी। अभी रीपो रेट पिछले तीन साल में सबसे उच्चतम स्तर 5.59 डॉलर ही क्यों प्रतिशत पर पहुंच गया है।
महंगाई की मार पूरी दुनिया पर
कोरोना महामारी और उसके कारण पूरी दुनिया के आर्थिक गतिविधियों के रुकने के कारण दुनिया के अधिकतर देश महंगाई की मार से जूझ रहे हैं। एशिया, अफ्रीका से लेकर यूरोपियन देश भी इससे अछूते नहीं है। भारत के साथ एक सकारात्मक बात यह है कि महंगाई दर में वृद्धि होने के बावजूद भारत की GDP ग्रोथ रेट दुनिया के दूसरे विकसित देशों से अच्छी है और जारी छमाही में सुधार होने की उम्मीद है। रिजर्व बैंक ने हाल ही में कहा था कि चालू वित्त वर्ष में भारत की GDP ग्रोथ रेट लगभग 7 प्रतिशत के आसपास रह सकती है।
रुपए के मूल्य में गिरावट के मायने
व्यापक व्यापार घाटे के साथ हाल ही में विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के कारण भारतीय रुपए के मूल्य में गिरावट दर्ज़ की गई और कुछ ही समय पहले यह अब तक के निचले स्तर पर पहुँच गया। रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था तक सभी के लिये चिंता का विषय बनी हुई है। ऐसे में यह जानकारी होना आवश्यक है कि रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट के मायने क्या हैं?
रुपया कमज़ोर या मज़बूत क्यों होता है?
- विदेशी मुद्रा भंडार के घटने या बढ़ने का असर किसी भी देश की मुद्रा पर पड़ता है। चूँकि अमेरिकी डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना गया है जिसका अर्थ यह है कि निर्यात की जाने वाली सभी वस्तुओं की कीमत डॉलर में अदा की जाती है।
- अतः भारत की विदेशी मुद्रा में कमी का तात्पर्य यह है कि भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं के आयात मूल्य में वृद्धि तथा निर्यात मूल्य में कमी।
- उदहारण के लिये भारत को कच्चा तेल आदि खरीदने हेतु मूल्य डॉलर के रूप में चुकाना होता है, इस प्रकार भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार से जितने डॉलर खर्च कर तेल का आयात किया उतना उसका विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ इसके लिये भारत उतने ही डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात करे तो उसके विदेशी मुद्रा भंडार में हुई कमी को पूरा किया जा सकता है। लेकिन यदि भारत से किये जाने वाले निर्यात के मूल्य में कमी हो तथा आयात कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही हो तो ऐसी स्थिति में डॉलर खरीदने की ज़रूरत होती है तथा एक डॉलर खरीदने के लिये जितना अधिक रुपया खर्च होगा वह उतना ही कमज़ोर होगा।
विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?
प्रत्येक देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिसका प्रयोग वस्तुओं के आयत –निर्यात में किया जाता है, इसे ही विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। भारत में समय-समय पर इसके आंकडे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं।
डॉलर के मुकाबले रुपया पस्त, निचले स्तर का एक और रिकॉर्ड बनाया, 2014 में इतने का था एक डॉलर
Dollar Vs Rupee: अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 6 पैसे की गिरावट के साथ एक और निचले स्तर को छुआ। डॉलर के मुकाबले रुपया आज 83.06 पर खुला। बता दें 30 मई 2014 को एक डॉलर का मूल्य 59.28 रुपये था।
विदेशी बाजारों में डॉलर ही क्यों डॉलर के मजबूत होने और विदेशी पूंजी की सतत निकासी के बीच अंतरबैंक विदेशीमुद्रा विनिमय बाजार में गुरुवार को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 6 पैसे की गिरावट के साथ एक और निचले स्तर को छुआ। डॉलर के मुकाबले रुपया आज 83.06 पर खुला। बता दें 30 मई 2014 को एक डॉलर का मूल्य 59.28 रुपये था।
बता दें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल कीमतों में तेजी तथा निवेशकों में जोखिम लेने की धारणा कमजोर होने से भी रुपये पर असर पड़ा। एलकेपी सिक्योरिटीज के उपाध्यक्ष (शोध विश्लेषक) जतिन त्रिवेदी ने कहा कि डॉलर की बढ़ती कीमतों के बीच घबराहट में रुपये की बिकवाली के चलते रुपया नए निचले स्तर पर आ गया है।
क्यों हो रही गिरावट
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा है कि डॉलर के बाहर जाने, चीन की मुद्रा में कमजोरी और मासिक अनुबंधों की समाप्ति से पहले कारोबारियों द्वारा अपने सौदे पूरा करने से रुपये का प्रदर्शन कमजोर रहा। अन्य एशियाई मुद्राओं में भी कमजारी रही। यूरोप और ब्रिटेन के निराशाजनक आर्थिक आंकड़ों ने डॉलर सूचकांक को मजबूती दी, जिससे रुपये पर भी असर पड़ा।
भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार: फिच
रेटिंग एजेंसी फिच ने बुधवार को कहा कि अमेरिका में मौद्रिक नीति मामले में सख्ती बरतने और वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति बढ़ने से जुड़े जोखिमों का सामना करने के लिए भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है। इसके साथ ही फिच रेटिंग्स ने कहा डॉलर ही क्यों कि बाह्य दबावों से भारत की साख को लेकर जोखिम सीमित ही है।
फिच ने कहा, ऐसा लगता है कि अमेरिका में तेजी से मौद्रिक सख्ती किए जाने और वैश्विक स्तर पर जिंसों के बढ़ते दामों से जुड़े जोखिमों से निपटने के लिए भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। एजेंसी ने कहा कि उसे विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत बने रहने की उम्मीद है और भारत का चालू खाते के घाटे (सीएडी) को एक उपयुक्त स्तर पर थामा जा सकेगा और चालू वित्त वर्ष में यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.4 फीसदी तक पहुंच जाएगा जो कि पिछले वित्त वर्ष में 1.2 डॉलर ही क्यों फीसदी था।
डॉलर के मुकाबले रुपये को संभालने के लिए आरबीआई कर रहा उपाय
फिच ने कहा कि सार्वजनिक वित्त की स्थिति रेटिंग के लिए प्रमुख घटक बना हुआ है और भारत बाह्य वित्तपोषण पर सीमित निर्भरता की वजह से वैश्विक उतार-चढ़ाव से सापेक्षिक तौर पर बचा हुआ है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस साल के नौ महीनों में करीब 100 अरब डॉलर तक घट चुका है। हालांकि अब भी इसका आकार करीब 533 अरब डॉलर है। विदेशी मुद्रा भंडार में आई यह बड़ी गिरावट बढ़ते सीएडी और डॉलर के मुकाबले रुपये को संभालने के लिए रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप को दर्शाती है।
रेटिंग एजेंसी ने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार अब भी 8.9 महीनों के आयात व्यय के लिए पर्याप्त है और किसी भी बाहरी संकट का का सामना करने की क्षमता देता है। फिच ने कहा, इस बड़े विदेशी मुद्रा भंडार से कर्ज पुनर्गठन क्षमता को आश्वासन मिलता है। इसके अलावा अल्पकालिक बाह्य बकाया ऋण भी कुल भंडार का सिर्फ 24 फीसदी ही है।
Rupee VS Dollar : डॉलर के मुकाबले रुपये में क्यों आ रही रिकॉर्ड गिरावट? आगे क्या है भारतीय मुद्रा का भविष्य?
डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में लगातार कमजोरी आ रही है. प्रतिदिन फॉरेक्स बाजार खुलने के साथ ही रुपया नए निचले स्तर . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : October 10, 2022, 12:22 IST
हाइलाइट्स
डॉलर के मुकाबले रुपया 82.70 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया.
नई दिल्ली. डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा लगातार नीचे गिर रही है और देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ता जा रहा है. प्रतिदिन फॉरेक्स मार्केट खुलने के साथ ही रुपये में गिरावट का नया रिकॉर्ड बन जाता है. एक्सपर्ट की मानें तो आगे रुपये का रास्ता और भी ढलान की ओर जाता है.
सोमवार को मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 82.70 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया. इसकी सबसे बड़ी वजह इमर्जिंग मार्केट में आ रही गिरावट और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सख्त नियमों को माना जा रहा है. आज सुबह 9 बजे के आसपास भारतीय मुद्रा अपने पिछले बंद भाव से करीब 0.47 फीसदी टूटकर ट्रेडिंग कर रही थी, जबकि इसकी शुरुआत ही रिकॉर्ड 82.72 के निचले स्तर से हुई थी.
अमेरिका में बढ़ती बॉन्ड यील्ड भारतीय मुद्रा के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है, जिसमें पिछले 8 में से 7 सत्रों में उछाल दर्ज किया गया है. फिलहाल 10 साल की बॉन्ड यील्ड 7.483 फीसदी पर है, जो पिछले बंद से 3 आधार अंक ऊपर है. गौरतलब है कि बॉन्ड यील्ड और फॉरेक्स बाजार एक-दूसरे के अपोजिट साइड में चलते हैं.
आगे भी ब्याज दरें बढ़ने का अनुमान
एक्सपर्ट का मानना है कि सितंबर में अमेरिकी कंपनियों ने उम्मीद से भी ज्यादा भर्तियां की हैं और बेरोजगारी दर गिरकर 3.5 फीसदी पर आ गई है. एनालिस्ट का कहना है कि अमेरिकी बेरोजगारी दर में गिरावट चौंकाने वाली है और इससे यह संकेत भी मिलते हैं कि फेडरल रिजर्व आगे भी अपनी ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला जारी रखेगा. बीते शुक्रवार को अमेरिकी फेड रिजर्व के गवर्नर क्रिस्टोफर वालर और लीजा कुक ने कहा था कि महंगाई को नीचे लाने के लिए अभी ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना जरूरी है.
अभी 83.50 तक जाएगा रुपया
कमोडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया का कहना है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में अभी और गिरावट आएगी. फेड रिजर्व ने 2023 में भी ब्याज दरें बढ़ाने की बात कही है, जिसका सीधा लाभ डॉलर को मिलेगा और भारतीय मुद्रा फिर दबाव में आ जाएगी. अनुमान है कि अगले कुछ सप्ताह में डॉलर के मुकाबले रुपया 83.50 के ऐतिहासिक निचले स्तर तक जा सकता है, जबकि इसमें सुधार आया तो 81.80 के आसपास ट्रेडिंग करेगा.
कच्चा तेल भी डालेगा दबाव
रुपये में गिरावट की सबसे बड़ी वजह क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतें होंगी, जो चालू खाते के घाटे को बढ़ाने के साथ भारतीय मुद्रा को कमजोर करेगा. एक्सपर्ट का अनुमान है कि आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमतें बढ़कर 100 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं, जो रुपये पर दबाव बढ़ाएंगी. ब्रोकरेज फर्म कोटक इंस्टीट्यूट का कहना है कि एनर्जी के दाम बढ़ने और ग्लोबल इकॉनमी में स्लो डाउन आने का दबाव भी भारतीय मुद्रा पर दिखेगा. इससे अक्तूबर में ही रुपया 83.50 तक गिर सकता है.
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Dollar Index Explained : डॉलर इंडेक्स का क्या है मतलब, इस पर क्यों नजर रखती है सारी दुनिया?
डॉलर इंडेक्स पर सारी दुनिया की नज़र रहती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है.
डॉलर इंडेक्स में भले ही 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है. (File Photo)
What is US Dollar Index and Why it is Important : रुपये में मजबूती की खबर हो या गिरावट की, ब्रिटिश पौंड अचानक कमजोर पड़ने लगे या रूस और चीन की करेंसी में उथल-पुथल मची हो, करेंसी मार्केट से जुड़ी तमाम खबरों में डॉलर इंडेक्स का जिक्र जरूर होता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार की हलचल से जुड़ी खबरों में तो रेफरेंस के लिए डॉलर इंडेक्स का नाम हमेशा ही होता है. ऐसे में मन में यह सवाल उठना लाज़मी है कि करेंसी मार्केट से जुड़ी खबरों में इस इंडेक्स को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि डॉलर इंडेक्स आखिर है क्या?
डॉलर इंडेक्स क्या है?
डॉलर इंडेक्स दुनिया की 6 प्रमुख करेंसी के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती या कमजोरी का संकेत देने वाला इंडेक्स है. इस इंडेक्स में उन देशों की मुद्राओं को शामिल किया गया है, जो अमेरिका के सबसे प्रमुख ट्रे़डिंग पार्टनर हैं. इस इंडेक्स शामिल 6 मुद्राएं हैं – यूरो, जापानी येन, कनाडाई डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना और स्विस फ्रैंक. इन सभी करेंसी को उनकी अहमियत के हिसाब से अलग-अलग वेटेज दिया गया है. डॉलर इंडेक्स जितना ऊपर जाता है, डॉलर को उतना मजबूत माना जाता है, जबकि इसमें गिरावट का मतलब ये है कि अमेरिकी करेंसी दूसरों के मुकाबले कमजोर पड़ रही है.
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डॉलर इंडेक्स में किस करेंसी का कितना वेटेज?
डॉलर इंडेक्स पर हर करेंसी के एक्सचेंज रेट का असर अलग-अलग अनुपात में पड़ता है. इसमें सबसे ज्यादा वेटेज यूरो का है और सबसे कम स्विस फ्रैंक का.
- यूरो : 57.6%
- जापानी येन : 13.6%
- कैनेडियन डॉलर : 9.1%
- ब्रिटिश पाउंड : 11.9%
- स्वीडिश क्रोना : 4.2%
- स्विस फ्रैंक : 3.6%
हर करेंसी के अलग-अलग वेटेज का मतलब ये है कि इंडेक्स में जिस करेंसी का वज़न जितना अधिक होगा, उसमें बदलाव का इंडेक्स पर उतना ही ज्यादा असर पड़ेगा. जाहिर है कि यूरो में उतार-चढ़ाव आने पर डॉलर इंडेक्स पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है.
डॉलर इंडेक्स डॉलर ही क्यों का इतिहास
डॉलर इंडेक्स की शुरुआत अमेरिका के सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिजर्व ने 1973 में की थी और तब इसका बेस 100 था. तब से अब तक इस इंडेक्स में सिर्फ एक बार बदलाव हुआ है, जब जर्मन मार्क, फ्रेंच फ्रैंक, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियन फ्रैंक को हटाकर इन सबकी की जगह यूरो को शामिल किया गया था. अपने इतने वर्षों के इतिहास में डॉलर इंडेक्स आमतौर पर ज्यादातर समय 90 से 110 के बीच रहा है, लेकिन 1984 में यह बढ़कर 165 तक चला गया था, जो डॉलर इंडेक्स का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है. वहीं इसका सबसे निचला स्तर 70 है, जो 2007 में देखने को मिला था.
डॉलर इंडेक्स इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
डॉलर इंडेक्स में भले ही सिर्फ 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इस पर दुनिया के सभी देशों में नज़र रखी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है. न सिर्फ दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेशनल ट्रेड डॉलर में होता है, बल्कि तमाम देशों की सरकारों के विदेशी मुद्रा भंडार में भी डॉलर सबसे प्रमुख करेंसी है. यूएस फेड के आंकड़ों के मुताबिक 1999 से 2019 के दौरान अमेरिकी महाद्वीप का 96 फीसदी ट्रेड डॉलर में हुआ, जबकि एशिया-पैसिफिक रीजन में यह शेयर 74 फीसदी और बाकी दुनिया में 79 फीसदी रहा. सिर्फ यूरोप ही ऐसा ज़ोन है, जहां सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार यूरो में होता है. यूएस फेड की वेबसाइट के मुताबिक 2021 में दुनिया के तमाम देशों में घोषित विदेशी मुद्रा भंडार का 60 फीसदी हिस्सा अकेले अमेरिकी डॉलर का था. जाहिर है, इतनी महत्वपूर्ण करेंसी में होने वाला हर उतार-चढ़ाव दुनिया भर के सभी देशों पर असर डालता है और इसीलिए इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है.