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चुनिंदा निर्यात बाजार विनियम

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चुनिंदा निर्यात बाजार विनियम

वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान निर्यात के आंकड़ों में आए जबरदस्त नाटकीय बदलाव (37.5 फीसदी) ने लंबे समय से कायम मेरी उस धारणा को पुष्टï किया है कि भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने में विनिमय दर बहुत बड़ा निर्धारक नहीं है। इस तथ्य के बावजूद कि इस दौरान रुपये में औसतन 4 फीसदी की मजबूती आई, अगर हम अग्रिम तीन महीनों के लिए औसत दर को देखें तो निर्यात में इतनी तेजी देखने को मिली, जितनी पहले कभी नहीं नजर आई।
वास्तव में, वर्ष 2003-04 से रुपये (तीन महीने की अवधि या उसके बिना भी) के औसत मूल्य और निर्यात में वास्तविक रूप से कोई अंतर्संबंध नहीं रहा है और आयात के मामले में भी यही बात देखने को मिली है, चाहे किसी भी वर्ष विशेष के आंकड़े खंगालकर देख लिए जाएं।
निर्यात वृद्घि के लिए वास्तविक रूप से वैश्विक बाजारों की प्रकृति ही सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। वर्ष 2009-10 में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था वैश्विक कर्ज संकट के कारण कराह रही थी तब निर्यात में 3.5 फीसदी की गिरावट आई थी। निर्यात में यह कमी इसके बावजूद हुई कि उससे पिछले वर्ष रुपये की हैसियत में लगभग 10 फीसदी से भी अधिक की कमजोरी आई थी।
यदि लोग एक कमजोर मुद्रा नहीं खरीद रहे हैं तब क्या यह प्रभाव किसी अन्य कारण उपजा? यदि विशेष संदर्भों में बात करें और भारत के लिए अधिक प्रासंगिक रूप से अहमियत रखने वाले बिंदुओं की बात करें तो हमारी निर्यात वृद्घि के लिए देश की उत्पादकता में हुई वृद्घि का बेहद अहम योगदान रहा है।
उत्पादकता में हुई बढ़ोतरी ने निर्यात के मोर्चे पर बहुत लाभ पहुंचाया है। हर साल दूरसंचार, परिवहन, कारोबारी कौशल, वित्तीय बाजार, सरकारी वित्त और यहां तक कि चुनिंदा निर्यात बाजार विनियम नौकरशाही के स्तर पर होने वाले सुधार की वजह से भारत की उत्पादकता में उछाल आ रही है। निश्चित रूप से ये सुधार अनियमित, असंगत और अलग-अलग हैं लेकिन वक्त-वक्त के हिसाब से और विभिन्न उद्योगों और कंपनियों की जरूरत के मुताबिक संचयी बदलाव बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा के लिए एक बेहतर औषधि की तरह काम करता है।
वास्तव में यह तथ्य और भी उत्तेजक है कि अपनी उत्पादकता को जापान, जर्मनी और अमेरिका जैसे विकसित देशों के माफिक बेहद ऊंचे स्तर पर ले जाने के लिए हमें अभी बहुत लंबा सफर तय करना है। दूसरे शब्दों में कहें तो अगले कुछ वर्षांें तक यह सिलसिला बदस्तूर चलने वाला है जब निर्यात वृद्घि पर विनियम दरों का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसका अर्थ यही है कि रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय (या फिर अधिक मजबूत बनाकर) बनाने से निर्यात प्रतिस्पर्धा या निर्यात वृद्घि पर मामूली सा प्रभाव ही नजर आएगा। ऐसे में जब दुनिया भर में व्यापक तौर पर उन मुद्राओं पर भारी दांव लगाने की तैयारी हो रही है जिन देशों की मुद्राएं पूर्ण परिवर्तनीय भी हों और बहुत महंगी भी न हों, तो ऐसे में रुपये को आगे बढ़ाने का यह बेहद माकूल वक्त है। अर्थव्यवस्था को बहुत ज्यादा फायदा पहुंचेगा, विदेशी निवेश में नाटकीय बढ़ोतरी के बाद कारोबारी उत्पादकता जोडऩे से लोगों का जीवन बेहद आसान हो जाएगा।
निस्संदेह, परिवर्तनीयता का बढ़ा दायरा रुपये में ऊंचे उतार-चढ़ाव को बढ़ावा दे सकता है। हालांकि, हमारे पास किसी भी आकस्मिक वृहत प्रभाव से निपटने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, वर्ष 2008-09 की मंदी से निपटने के लिए हमें अपने भंडार से केवल 30 अरब डॉलर (कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 10 फीसदी) ही निकालने पड़े, भंडार फिर 300 अरब डॉलर के आंकड़े को छू चुका है और इसका आकार निरंतर बढऩे पर ही है।
सूक्ष्म स्तर पर अस्थिरता के इस ऊंचे प्रभाव से निपटने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को कुछ इंतजाम करने होंगे। केंद्रीय बैंक को कुछ चुनिंदा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को 'सुपर-एडी 2Ó के तौर सेवा प्रदान करने के लिए लाइसेंस देना होगा जो उन छोटी एवं मझोली औद्योगिक इकाइयों को विदेशी विनिमय (एफएक्स) के स्तर पर बेहतर सुविधाएं मुहैया करा सकें। फिलहाल मौजूदा बैंकिंग तंत्र इस तबके तक ये सेवाएं उचित रूप से उपलब्ध नहीं करा पाया है।
विदेशी विनिमय के छोटे उपभोक्ताओं को वैकल्पिक मार्ग मुहैया कराने के लिए मुद्रा वायदा शुरू कर आरबीआई ने उनकी जरूरत को अप्रत्यक्ष रूप से समझने की कोशिश की है, हालांकि अब यह किसी से छिपा नहीं रह गया है कि हेजिंग के लिए यह जरिया कारगर नहीं रहा है। वास्तव में, पूर्ण परिर्वतनीयता के बाद वायदा बाजार हेजिंग करने वालों के लिए भी बेहद आकर्षक बन जाएगा क्योंकि इससे भौतिक निपटान की अनुमति स्वत: ही मिल जाएगी।
बहरहाल इससे पहले कि आरबीआई इसके लिए बटन दबाए, उससे पहले जरा अपनी सांसे थाम लीजिए और एक महत्त्वपूर्ण कर्ज बाजार पर भी कुछ ध्यान दे लीजिए। आप तब तक कोई परिवर्तनीय मुद्रा हासिल नहीं कर सकते जब तक कि कर्ज बाजार में पर्याप्त नकदी मौजूद हो जहां विदेशी विनिमय की दिशा विभिन्न स्तरों पर ब्याज दरों में अंतर को दर्शाएं। आरबीआई निजी तौर पर यह स्वीकार कर चुका है कि यदि राष्टï्रीयकृत बैंक अपनी ब्याज-संवेदनशील परिसंपत्तियों के कारोबार में और भी अधिक सक्रिय बन जाएं तो यही इस राह पर आगे बढऩे का एकमात्र जरिया हो सकता है।
आरबीआई बैंकों को इस राह पर आगे बढ़ा सकता है- बस उसे बैंकों से यही कहना होगा कि वे परिपक्व श्रेणी से कुछ बाहर निकलें जिनकी बैंकों को उनके रोजमर्रा के कामकाज के लिए बॉन्ड पोर्टफोलियो के तौर पर दरकार होती है। लेकिन डर इस बात का है कि ज्यादातर राष्टï्रीयकृत बैंक जोखिम कम करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद बंद कर सकते हैं, जो सरकार के कर्ज लेने की मुहिम के लिए तमाम तरह की तगड़ी समस्याएं पैदा कर सकता है।
हालांकि, जब से पिछले बजट में वित्त मंत्री ने ऐलान किया है कि ऋण प्रबंधन के लिए एक अलग विभाग स्थापित किया जाएगा जो जल्द ही शुरू होगा तो ऐसे में आरबीआई मौद्रिक नीति और बाजार की गतिविधियों पर अधिक ध्यान दे पाएगा। बदलाव में निश्चित रूप से कुछ दुश्वारियां भी होंगी। मसलन कुछ आरबीआई से जुड़ी हो सकती हैं कि वह प्रमुख समस्याओं का निराकरण कर पाने में असमर्थ है और कुछ हमारे नेताओं से जुड़ी हो सकती है जिन्हें यह समझना होगा कि राजकोषीय अनुशासनहीनता को बाजार बुरी तरह लताड़ता है। लेकिन आप अंडों को फोड़े बिना ऑमलेट नहीं बना सकते।
बहरहाल अच्छी खबर यही है कि मीडिया के प्रोत्साहन से हमारे समाज के सभी वर्गों में हलचल बढ़ी है जो हमारे राजनीतिक आकाओं से अधिक अनुशासन की मांग करने लगे हैं। इन प्रयासों में लगी ऊर्जा और निरंतरता यह सुनिश्चित करेगी कि यह प्रक्रिया पटरी से उतरने वाली नहीं है।
नया भारत वास्तव में मैदान में उतर चुका है और दुंदुभि बजाकर ऐलान कर रहा है कि आ जाऊं मैदान में! जहां तक रुपये की बात है-मेरे ख्याल से एक या दो साल की अवधि में हमें रुपये में पूर्ण परिवर्तनीयता के दर्शन हो सकते हैं।

वित्तीय उत्पाद उभरते सितारे कार्यक्रम

उभरते सितारे कार्यक्रम (यूएसपी) के अंतर्गत ऐसी भारतीय कंपनियों को चिह्नित किया जाता है, जो फ्यूचर चैंपियन हैं और उनमें निर्यातों की अच्छी संभावनाएं हैं। इसके तहत चिह्नित कंपनी का तकनीकी, उत्पाद अथवा प्रोसेस के लिहाज से बेहतर स्थिति में होना ज़रूरी है। ऐसी कंपनी यदि फिलहाल अंडर-परफॉर्मिंग है या बड़ी कंपनी के रूप में उभरने के लिए अपनी क्षमताओं का पूरा दोहन नहीं कर पा रही है, तो भी उसे सहायता दी जा सकती है। यह कार्यक्रम ऐसी कंपनियों की बाधाओं का पता लगाकर उन्हें उनकी जरूरत के अनुसार इक्विटी, ऋण और तकनीकी सहयोग प्रदान करता है।

कार्यक्रम के उद्देश्य

क) वित्तीय सहायता सहित हैंडहोल्डिंग सहयोग के जरिए चुनिंदा क्षेत्रों में भारत की स्पर्धात्मकता बढ़ाना;

ख) विशिष्ट तकनीक, उत्पादों या प्रोसेस वाली कंपनियों को उनका निर्यात व्यवसाय बढ़ाने के लिए चिह्नित करना;

ग) निर्यातों की संभावनाओं वाली ऐसी इकाइयों को सहयोग करना, जो वित्त चुनिंदा निर्यात बाजार विनियम के अभाव में अपने परिचालन नहीं बढ़ा पा रही हैं;

घ) सफल कंपनियों को निर्यातों में आने वाली चुनौतियों को चिह्नित करना और उन्हें दूर करना;

ङ) मौजूदा निर्यातकों को अपने निर्यात उत्पादों को बढ़ाने और रणनीतिक एवं स्ट्रक्चर्ड निर्यात बाजार विकास पहल के जरिए नए बाजारों में प्रवेश कराने में सहयोग करना।

किस प्रकार की होगी सहायता

बैंक पात्र कंपनियों को निम्नलिखित के जरिए वित्तीय और परामर्शी दोनों प्रकार की सहायता प्रदान कर सकता हैः

क) इक्विटी / इक्विटी जैसे इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए सहायता

ख) ऋण (निधिक / गैर निधिक): निम्नलिखित गतिविधियों में निवेश के जरिए उत्पादन इकाइयों के आधुनिकीकरण, प्रौद्योगिकी / क्षमता उन्नयन, अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) के लिए सहायताः

टूल्स, जिग्स और फिक्सचर;

टेस्टिंग/ क्वालिटी कंट्रोल इक्विपमेंट;

ग) उत्पाद के उन्नयन और सुधार, प्रमाणीकरण लागत, प्रशिक्षण खर्च, उत्पाद / बाजार विकास के लिए विदेशी यात्रा सहित बाजार विकास गतिविधियों, क्षेत्रों, बाजारों से संबंधित अध्ययनों, विनियमों, तकनीकी आर्थिक अर्थक्षमता (टीईवी) अध्ययन आदि के लिए तकनीकी (टेक्निकल) सहायता।

पात्रता

क) प्रौद्योगिकी, उत्पादों और प्रोसेस के मामलों में वैश्विक मानकों के अनुरूप विशिष्टता रखने वाली कंपनियां;

ख) बेहतर वित्तीय स्थिति और निर्यात उन्मुखता वाली मूलभूत रूप से मजबूत कंपनियां;

ग) वैश्विक बाजार में पहुंच बनाने योग्य लगभग INR 500 करोड़ तक के वार्षिक टर्नओवर वाली छोटी और मध्यम आकार की कंपनियां;

घ) बेहतर बिजनेस मॉडल, मजबूत प्रबंधन क्षमताओं और उत्पाद की गुणवत्ता पर फोकस करने वाली कंपनियां;

ङ) चुनिंदा क्षेत्रः ऑटोमोबाइल और ऑटो पुर्जे, एयरोस्पेस, पूंजीगत वस्तुएं, रसायन, रक्षा, खाद्य प्रसंस्करण, आईटी और आईटी आधारित सेवाएं (आईटीईएस), मशीनरी, फार्मासूटिकल्स, उन्नत इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल्स और संबंधित क्षेत्र।

अधिक जानकारी के लिए इच्छुक कंपनियां कृपया [email protected] पर संपर्क कर सकती हैं।
फोनः +91-22-22172600 / +91-11-24607700

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निर्यात बढ़ाने पर ध्यान दें व्यापारी: चिदंबरम

वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने शनिवार को उद्योग एवं व्यापार जगत से आकर्षक विनियम दर का लाभ उठाते हुए निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आयात को जरूरत से ज्यादा नहीं.

निर्यात बढ़ाने पर ध्यान दें व्यापारी: चिदंबरम

वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने शनिवार को उद्योग एवं व्यापार जगत से आकर्षक विनियम दर का लाभ उठाते हुए निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आयात को जरूरत से ज्यादा नहीं दबाया जा सकता क्योंकि यह कई घरेलू उद्योगों की जीवन रेखा है।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोटर्स आर्गनाइजेशन (फियो) की एक बैठक के दौरान चिदंबरम ने कहा कि अप्रैल-अक्टूबर में व्यापार घाटा 90.7 अरब डॉलर रहा है। आपको याद होगा कि पिछले साल मैंने कहा था कि चुनिंदा निर्यात बाजार विनियम पूरे साल का व्यापार घाटा 190 अरब डॉलर रहा था। इस साल हमने सात महीनों की अवधि में महज 90 अरब डॉलर का आंकड़ा पार किया है, पांच महीने अभी बाकी हैं।

वित्त मंत्री ने कहा कि मान लें कि व्यापार का अंतर मामूली रूप से बढ़ता है तो हम व्यापार घाटे को करीब 150 अरब डॉलर पर नियंत्रित करने में कामयाब रहेंग़े़ इसके 155 अरब डॉलर पर रहने पर भी मुझे लगता है कि हम तब भी अच्छी स्थिति में होंगे।

चिदंबरम ने कहा, कहने का मतलब है कि हम आपके सुझाव सुनने को तैयार हैं। हम नीतियों को दुरुस्त करने को तैयार हैं, लेकिन हमारा लक्ष्य एक होना चाहिए। हमारा लक्ष्य देश से अधिक से अधिक निर्यात करना होना चाहिए और इसके लिए यह सबसे अच्छा समय है। विनिमय दर काफी आकर्षक, प्रतिस्पर्धी है। शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 62.87 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।

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