नए विदेशी मुद्रा व्यापारियों के लिए युक्तियाँ

मुख्य प्रकार के सिक्के

मुख्य प्रकार के सिक्के
नई दिल्ली/टीम डिजिटल।सि भारत में क्कों का इतिहास 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास माना जाता है। 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बाद और आजादी के पहले और वर्तमान में सिक्कों को विभिन्न शासन में कई बदलाव किये गए। अपने पूरे इतिहास में सिक्कों और मौद्रिक प्रणाली ने कई उतार चढ़ाव भी देखने को मिला है। इसी दौरान खबर मुख्य प्रकार के सिक्के है कि सरकार जल्द ही सौ रुपये का सिक्का जारी करने वाली है।

मौर्यकालीन राज्यव्यवस्था और प्रशासन

सिक्के स्वर्ण, चाँदी और तांबे के बने होते थे। इनसे बनी मुद्राओं को निम्नलिखित नामों से जाना जाता था जो इसप्रकार हैं।
स्वर्ण सिक्के–निष्क एवं सुवर्ण
चाँदी के सिक्के–पण, रूप्य, धरन, शतमान
ताँबे के सिक्के–माषक, भाषक एवं कांकणी
कार्षापण चाँदी एवं तांबे को मिलाकर बनाया जाता था।

1. मुद्रा काकणी किस धातु का बना होता था ?
उत्तर :- तांबे का
2. मेगास्थनीज ने एक मार्ग निर्माण अधिकारी का उल्लेख किया है जिसे कहा जाता था ?
उत्तर :-एग्रोनोमोई
3. कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में शूद्रों को मलेच्छों से भिन्न दर्जा देते हुए कहा है ?
उत्तर :- आर्य
4. अर्थशास्त्र के अनुसार वैसी स्त्रियां जो घर से बाहर नहीं निकलती थीं, कहा जाता था ?
उत्तर :- अनिष्कासिनी
5. मौर्यकाल में सूती वस्त्र के प्रमुख केन्द्र थे-
उत्तर :- काशी, बंग, पुण्डु, कलिंग और मालवा
6. मौर्यकाल में मुद्राओं को जारी करने का अधिकार किसे था ?
उत्तर :-लक्षणाध्यक्ष एवं सौवर्णिक को
7. कौटिल्य ने कितने दासों का उल्लेख किया है ?
उत्तर :- नौ प्रकार के
8. मेगास्थानीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में शिल्पियों को स्थान दिया है ?
उत्तर :- चौथा
9. मौर्यकाल में सिंचाई कर निर्धारित था- उपज का 1/5 से 1/3 भाग
मौर्यकाल में समस्त निर्मित वस्तुओं को जिसकी देखभाल में बाजारों में बेचा जाता था, उसे क्या कहा जाता था ?
उत्तर :-पण्याध्यक्ष
10. मौर्यकाल में रेशम का किस देश से आयात होता था ?
उत्तर :- चीन से।
प्राचीन भारत का इतिहास
11. अर्थशास्त्र में शीर्षस्थ अधिकारी के रूप में 18 तीर्थों का उल्लेख मिलता हैजिन्हें एक अन्य नाम से भी जाना जाता है ?
उत्तर :- महामात्र मुख्य प्रकार के सिक्के
12. सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थों में तीन कौन थे, जिन्हें करीब 48,000 पण वार्षिक वेतन के रूप में मिलता था ?
उत्तर :- पुरोहित, महामंत्री और सेनापति
13. राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी जिसका मौर्य प्रशासन के अन्तर्गत मुख्य कार्य राजस्व इक्ट्ठा करना था, क्या कहलाता था ?
उत्तर :- समाहर्ता
14. मौर्य काल में राजकीय कोष के अधिकारी को कहा जाता था- सत्रिधाता
15. फैाजदारी न्यायालय के न्यायाधीश को कहा जाता था ?
उत्तर :- प्रदेष्टा
16. मौर्य प्रशासन के अन्तर्गत राजकीय आदेशों को लिपिबद्ध कराने वाला एवं राजकीय कागजातों को सुरक्षित रखने वाला मुख्य अधिकारी था ?
उत्तर :- प्रशास्ता
17. अर्थशास्त्र में 28 अध्यक्षों का विवरण मिलता है जिन्हें यूनानी लेखकों ने क्या कहा है ?
उत्तर :- मजिस्ट्रेट
18. युद्ध क्षेत्र मुख्य प्रकार के सिक्के मुख्य प्रकार के सिक्के में सेना का नेतृत्व करने वाला अधिकारी क्या कहलाता था ?
उत्तर :- नायक
19. कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में गुप्तचरों को कहा है-
उत्तर :- गूढ पुरूष
20. गुप्तचर विभाग जिसके अधीन कार्य करता था, उसे कहा जाता था ?
उत्तर :- महामात्यापसर्प
21. अशोक के समय जनपदीय न्यायाधीश को कहा जाता था ?
उत्तर :- राजुक
22. मौर्य काल में भूमि कर उपज का कितना भाग निर्धारित था ?
उत्तर :- 1/6 से 1/4 भाग
23. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उल्लेखित मौर्यकालीन मुद्रा कार्षापण किस धातु का बना होता था ?
उत्तर :-चांदी एव तांबे ।

सबसे पहले सोने के सिक्के किसने चलाए

एक समय था जब भारत को अक्सर सोने की चिड़िया कहा जाता था। अनेक वर्षों के बाद, विविध संभताएं स्वर्ण पर एक मुद्रा के रुप में निर्भर थी और यह समृद्धि का प्रतीक भी रहा। यहां पर आप पढ़ेंगे, भारत के सोने के सिक्कों के बारे में कुछ अद्भुत तथ्य, जो यह सिद्ध करते हैं, कि स्वर्ण को लेकर हमारा प्रेम सचमुच समय से परे है।

भारत के कुछ सबसे पुराने स्वर्ण के सिक्के, कुषाण सभ्यता में सामने आए थे। इनमें से कुछ, यहां पर हैं:

कनिष्क I स्वर्ण सिक्का

यह भारत के किसी राजा द्वारा जारी प्रथम स्वर्ण सिक्का माना जाता है इसे 127 सीई में कुषाण राजा कनिष्क 1 द्वारा जारी किया गया था। यह उन कुछ विशेष सिक्कों में से हैं जिन्हे ग्रीक भाषा में और बाद में बैक्टरियन भाषा में जारी किया गया था जो कि एक इरानी भाषा थी और उस दौरान केन्द्रीय एशिया के क्षेत्र बैक्टरिया (वर्तमान उज़्बेकिस्तान, अफगानिस्तान और तज़ाकिस्तान) में बोला जाता था।

Gold Dinar From Kanishka Reign

हुविन्श्का स्वर्ण सिक्का

कनिष्क के पुत्र हुविन्श्का द्वारा अनेक स्वर्ण के सिक्के और मुद्राएं जारी की गई, इनमें से कुछ उदाहरण यहा दिये गए हैं। ये भी बैक्टरियन भाषा में थे, इन सिक्कों के जारी करने का समय 155 से 190 सीई के मध्य था। इन सिक्कों में इरानी सौर देवता मित्र को दर्शाया गया है।

Gold Coin From Huvishka Era

वसुदैव 1 स्वर्ण सिक्का

वसुदैव I को हुविन्श्क का बेटा माना जाता है जो कि उनकी हिन्दू पत्नी का पुत्र था और यह उनके नाम से ही सिद्ध हो जाता है। यह स्वर्ण के सिक्के का एक उदाहरण है जिसे 195 सीई में जारी किया गया जिसमें भगवान शिव और नन्दी दिखाए गए हैं।

Gold Coin With Lord Shiva Nandi Design

कनिष्क 2 स्वर्ण सिक्का

कनिष्क 2 द्वारा जारी किये गए सोने के सिक्के यहां दिये गए हैं, इस राजा द्वारा कम से कम 20 वर्षों तक राज्य किया गया। इन सिक्कों में भी भगवान शिव व नंदी बैल दिखाए गए हैं। यहां पर वर्ष 227 से 247 सीई के मध्य जारी स्वर्ण के सिक्कों को दिखाया गया है। यह उनके पूर्वजों द्वारा जारी सिक्कों के समान ही है, इनमें थोड़ा सा ही लेखन व कला में बदलाव दिखाई देता है।

Shiva Nandi Inspired Gold Coins

वसिश्क स्वर्ण सिक्का

वसिश्क स्वर्ण सिक्के को वर्ष 247 से 265 सीई के मध्य जारी किया गया और इसमें इरानी देवी आर्डोचाशो का चित्र बांई ओर दिया गया है।

Gold Dinar Issued by Vashishka

यह वर्ष 275 से 300 सीई के मध्य जारी किया गया था और इस सिक्के में भी अपने पूर्वजों द्वारा जारी मुख्य प्रकार के सिक्के सिक्के के साथ बेहतर साम्य दिखाई देता है।

Ancient Gold Coin Issues By Vasudeva II

वसुदैव II के पश्चात, कुषाण साम्राज्य की स्थिति सामान्य नही रह गई थी। इसलिये शक स्वर्ण सिक्के जारी किये गए और एक लम्बे समय तक राजा शक के नाम के ये सिक्के चलन में रहे। शक सिक्के अन्य सिक्कों की तुलना में आकर्षक थे और इन्हे चौथी शताब्दी के मध्य में जारी किया गया था। ये सिक्के, अन्य सिक्कों के समान ही राजा और देवी आर्डोचाशो के चित्रों से सजे थे।

Designer Gold Coins From Shaka Reign

गुप्त साम्राज्य के दौरान, भारतीय सभ्यता ने अपना स्वर्ण काल देखा, सभ्यता, संस्कृति, कला और स्वर्ण के सिक्के। कुछ बेहतरीन स्वर्ण के सिक्कों को गुप्त साम्राज्य में ही जारी किया गया और इन्हे जारी अक्रने का काल 335 से 375 सीई के मध्य रहा। यहां पर उस समय के कुछ सिक्कों को दिखाया जा रहा। :

इसे आदर्श प्रकार कहा जाता है, यह प्रथम गुप्त साम्राज्य के स्वर्ण मुद्रा के रुप में जाने जाते हैं। इसमें राजा को राजदन्ड हाथ में लिये हुए दर्शाया गया है।

Spectre- Gold Coin From Gupta Reign

इन सिक्कों को राजा चन्द्रगुप्त प्रथम और लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी के विवाह के अवसर पर ढ़ाला गया था। यह गुप्त साम्राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी और यह माना जाता है कि इससे राज्य में सौभाग्य की वृद्धि हुई और वे अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सक्षम हो सके।

King Queen Design Inspired Gold Dinar

गुप्त साम्राज्य का सबसे प्रमुख सिक्का, जिसमें राजा को अपने बांए हाथ में धनुष लिये हुए दिखाया गया है और उनके दांए हाथ में तीर है।

Gold Coins With Archer Designs

इस सिक्के में राजा के बांए हाथ में युद्धक हथियार मौजूद है। इस सिक्के के दूसरी ओर हिन्दू देवी लक्ष्मी का चित्र है और इसमें राजदन्ड, धनुर्धर और राजा तथा रानी दिखाए गए हैं।

Gold Coin With Battle Axe

जैसा कि इसके नाम से ही यह सिद्ध होता है, इस सिक्के में एक घोड़ा दिखाया गया है। वैधिक काल में, अश्वमेधा अर्थात एक घोड़ा हुआ करता था जिसे राजाओं द्वारा अपने राज्य के विस्तार के लिये उपयोग में लाया जाता था। इस सिक्के के दूसरी ओर रानी को दर्शाया गया है।

Gold Dinar With Horse Design

यह सिक्का सबसे अलग है क्योंकि इसमें राजा को सांगीतिक वाद्य बजाते हुए दिखाया गया है। राजा समुद्रगुप्त को बेहतरीन संगीत साधक माना जाता था।

Lyrics Embossed Famous Gold Dinar

शेर का शिकार दर्शाने वाले सिक्के किसी भी राजा के बल और पौरुष को दर्शाते हैं। इस सिक्के में राजा द्वारा शेर की ओर अपना निशाना लगाते हुए दिखाया गया है और जानवर के शिकार के बाद की स्थिति दर्शाई गई है।

Tiger Slaying Design On Ancient Coin

गुप्तकालीन सिक्कों में से यह सबसे अंतिम शृंखला है, इसमें राजा को वेदी के पास चक्र हाथ में लिये हुए दिखाया गया है।

Chakra Design On Gold Coin

गुप्तकाल के पश्चात, सिक्कों में मुख्य रुप से हर्ष और पूर्व मध्यकालीन राजपूत शैली की छाप दिखाई देती है। सोने के सिक्कों में समय के साथ होने वाला यह बदलाव देखना रोचक है।

बैठी हुई लक्ष्मी के सिक्के

कलचुरी शासक गांगेयदेवा द्वारा जारी इन सोने के सिक्कों को काफी प्रसिद्धि मिली थी और उन्हे अन्य राजाओं द्वारा भी अपने लिये इस्तेमाल किया गया।

बैल और घुड़सवार के सिक्के

बैल और घुड़सवार मुख्य रुप से राजपूत शासन के दौरान जारी किये जाने वाले सिक्कों में सबसे सामान्य प्रकार दिखाई देते हैं।

राजा शिवछत्रपति के साम्राज्य के दौराज जारी किये गए सोने के सिक्के भी अपना अलग महत्व रखते हैं।

इन्हे वर्ष 1674 से 1680 के मध्य जारी किया गया था जिनपर शिवाजी को राजा शिव के रुप में एक ओर और छत्रपति या क्षत्रियों के देवता के रुप में दूसरी ओर चित्रित किया गया था।

सिक्कों ने भारत के स्वर्ण के साथ के संबंधों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज, भारत में स्वर्ण के सिक्के सुरक्षा, शुद्धता, मान सम्मान और मूल्य, सभी का एक संस्करण माने जाते हैं और स्वर्ण एक बार फिर से हमारे ह्र्दय और हमारे बटुवे में अपना स्थान सुनिश्चित कर चुका है।

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छत्तीसगढ़ में है साइंस सेंटर. यहां देखिए आलसी सिक्का, जादुई नल और अनंत कुआं

छत्तीसगढ़ में है साइंस सेंटर. यहां देखिए आलसी सिक्का, जादुई नल और अनंत कुआं

रायपुर। अगर आप बच्चों के साथ रायपुर घूमने का प्लान बना रहे हैं तो एक बार छत्तीसगढ़ विज्ञान केंद्र जरूर आएं। विधानसभा रोड पर सड्डू में स्थित इस साइंस सेंटर पर आप खेल-खेल में मुख्य प्रकार के सिक्के विज्ञान को समझने के साथ वहीं अपना परीक्षण भी कर सकते हैं।

यहां पर कुटुसर गुफा, अनंत कुआं, आलसी सिक्का, रिंग का भ्रम, थाली पर सिर, जादुई पानी का नल, तैरती गेंद, दर्पण भूलभुलैया जैसे कई आकर्षण हंै। सबरंग के इस अंक में साइंस सेंटर की सैर करवा रहे हैं गिरीश वर्मा. ।

छत्तीसगढ़ विज्ञान केंद्र प्रदेश में अपनी तरह का एकमात्र विज्ञान केंद्र हैं। इसकी स्थापना 13 जुलाई सन 2012 में की गई थी। यह 10 एकड़ में फैला हुआ है। इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य है 'खेल-खेल में विज्ञान सीखना है। कोरोना संक्रमण के कारण पिछले दो वर्षाें से बंद इस विज्ञान केंद्र को दोबारा 29 जून, 2022 को खोला गया। विज्ञान को जानने के साथ साथ उसे महसूस करने वाले सैकड़ों लोगों को छत्तीसगढ़ साइंस सेंटर अपनी ओर आकर्षित करता है। यह सुबह 10 से शाम 5.30 बजे खुला रहता है।

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सोमवार के दिन यह बंद रहता है। यहां छात्रों के लिए शुल्क पांच रुपये और सामान्य व्यक्तियों के दस रुपये शुल्क लिया जाता है। इसके अलावा थ्री डी शो और तारामंडल शो का दस-दस रुपये अलग से शुल्क लगता है। तारामंडल का पहला शो सुबह 11.30 बजे व दूसरा शो शाम 4 बजे होता है। वीकेंड पर चार-पांच सौ तो राष्ट्रीय त्योहारों में हजारों की संख्या में लोग यहां आते हैं। जिस प्रकार सीखने की कोई सीमा नहीं होती, उसी तरह यहां प्रवेश के लिए कोई उम्र का बंधन नहीं है। विज्ञान केंद्र की चहारदीवारी के बाहर, आरामदायक हरा-भरा विज्ञान उद्यान फैला हुआ है। जहां सरल मशीनों, ध्वनि, प्रकाश विज्ञान, दोलक इत्यादि पर माडल स्थापित हैं।

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विज्ञान केंद्र में प्रमुख मुख्य गैलरी

1. छत्तीसगढ़ के संसाधन गैलरी

'छत्तीसगढ़ के संसाधन शीर्षक दीर्घा अंत: क्रियात्मक प्रदशों से राज्य के प्राकृतिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक, मानव, आर्थिक एवं भूगर्भ संसाधनों को दिखाती है तथा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर इसे दर्शाती है। दीर्घा का प्रवेश क्षेत्र राज्य के इतिहास एवं इसके निर्माण को प्रमुखता से दर्शाता है। इस दीर्घा में दीर्घा छत्तीसगढ़ के वनस्पति एवं जीव-जंतु के साथ कुटुम्बसर की गुफा, कोयले से विद्युत तक सफर, एल्युमिनियम से बने बर्तन, धान के किस्म, शैलों के प्रकार को दिखाया गया है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति से जुड़े पहनावा, वाद्ययंत्र, कार्यशैली को भलीभांति दिखाया गया है। इस अनुभाग में 'वात भट्टी का कार्यकारी प्रतिरूप आकर्षण को बढ़ाता है। राज्य के अन्य अनेक प्राकृतिक संसाधन हैं, जिन्हें इस दीर्घा में आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

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2. मापन गैलरी

दूसरी विषय आधारित दीर्घा 'मापन विभिन्न् मापन इकाईयों और उनके ऐतिहासिक विकास, दैनिक जीवन में व्यवहत विभिन्न् मापन तकनीकों और उनसे संबंधित जानकारियों को दर्शाती है। दीर्घा विभिन्न् अनुभागों जैसे हमारी मापन संस्कृति, मापन ज्ञान का विकास, मापन जिसने हमारी वैश्विक दृष्टि बदली, स्वयं को मापना, दूरी से मापना, अदृश्य का मापना, दैनिक जीवन मापन, सामाजिक एवं आर्थिक मापन, मापन की सीमाएं, मापन स्तर के निर्णायक और एक 'मापन प्रयोगशाला में विभाजित है। भार, ध्वनि, हवा, वर्षा, पीएच, समुद्र की गहराई, मानव विकास सूचकांक, व्युत्पन्न् इकाइयां, आकर मुख्य प्रकार के सिक्के और परिमाण, ग्रहों के महत्वपूर्ण आंकड़े, भूकंप की जानकारी से संबंधित प्रतिरूप रखे गए हंै।

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3. मनोरंजक विज्ञान गैलरी

500 वर्ग मीटर क्षेत्र में विस्तृत 'मनोरंजक विज्ञान दीर्घा दर्शकों को अत्यन्त मनोरम परिवेश में विज्ञान के विभिन्न् विषयों को अनुभव करने, पता लगाने एवं अन्त:क्रिया करने का अवसर प्रदान करती है। यहां पर दर्शक अशांतकारी दोलक, गुरुत्वाकर्षण को नहीं मानने वाले वस्तुओं, भ्रम पैदा करने वाली प्रकाशीय उपकरणों, कलाबाजी करती गतिशील गेंद, प्रकाश उत्पन्न करने वाली रंगीन छायायों, अश्रृंखलित वस्तुओं को दर्शाने वाले दर्पण इत्यादि से अन्त: क्रिया कर सकते हैं।

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4. थ्रीडी प्रेक्षागृह गैलरी

इस प्रेक्षागृह में पोलाराइड आधारित स्टीरियो प्रक्षेपण से त्रिविमीय प्रभाव उत्पन्न् होते हैं। यह शो विशेष प्रकार के पोलाराइड चश्मों की मदद से तल्लीन कर देने वाली अनुभूति प्रदान करता है। यहां जीव-जंतुओं से लेकर वनस्पतियों के त्री विमीय फोटो और लघु वीडियो दिखाए जाते हंै। इसके अलावा एक शिशु कक्ष, जहां बच्चे अनेक प्रकार की पहेलियां और विज्ञान किट्स के साथ सरल प्रयोगों का आनन्द उठा सकते हैं।

तारामंडल भी विशेष आकर्षण

साइंस सेंटर में एक तारामंडल कक्ष है। जहां खगोलीय विचारों को अनोखे एवं अन्त: क्रियात्मक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। एक विज्ञान प्रदर्शन कक्ष जहां आगन्तुकों के समूह के लिए प्रदर्शनी और प्रयोगों को आयोजित करने का प्राविधान है ताकि उनमें विज्ञान के बारे में अभिरूचि उत्पन्न् हो सके। एक अस्थायी प्रदर्शनी हाल,जिसमें 'जल एक मूल्यवान संपदा और 'जैव विविधता शीर्षक नामक दो प्रदर्शनियां हैं।

इंजी. अमित कुमार मेश्राम ने बताया कि छत्तीसगढ़ विज्ञान केंद्र, विज्ञान के छात्रों के साथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वालों के साथ अन्य जो इस विषय में रुचि रखते हैं, उनके लिए बेहद अनुकूल जगह है। छात्रों को यहां वह सब चीजें प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलेगी, जो वे अपनी किताबों के माध्यम पढ़ते हैं। केंद्र का मुख्य उद्देश्य है खेल खेल में विज्ञान सीखना और विज्ञान के प्रति लोगों को जागरूक करना। यहां विज्ञान से संबंधित प्रदर्शनी, सेमिनार, प्रतियोगिता भी कराई जाती है।

जानें 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बाद आई भारतीय सिक्कों की कहानी.

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नई दिल्ली/टीम डिजिटल।सि भारत में क्कों का इतिहास 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास माना जाता है। 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बाद और आजादी के पहले और वर्तमान में सिक्कों को विभिन्न शासन में कई बदलाव किये गए। अपने पूरे इतिहास में सिक्कों और मौद्रिक प्रणाली ने कई उतार चढ़ाव भी देखने को मिला है। इसी दौरान खबर है कि सरकार जल्द ही सौ रुपये का सिक्का जारी करने वाली है।

गौरतलब है कि भारत में पहली बार 75, 150 और 1,000 रुपये के सिक्कों को ढाला गया। यह भारतीय रिजर्व बैंक की प्लैटिनम जुबली, रवीन्द्रनाथ टैगौर की 150वीं जयंती और बृहदेश्वर मंदिर के 1000 साल होने के उत्सव में क्रमशः जारी किए गए थे। इसके बाद इसे बंद कर दिया मुख्य प्रकार के सिक्के गया था। बता दें कि कई पुराने सिक्कों का चलन बंद होने के बाद ये सिक्के इतिहास का हिस्सा बन गए और आज इन्हीं के बारे में हम आपको बताएंगे.

तमिलनाडु के दिवंगत मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन की जन्मशती के अवसर पर सरकार 100 रुपये और पांच रुपये का सिक्का जारी करेगी। साथ ही पांच रुपये का भी नया सिक्का जारी मुख्य प्रकार के सिक्के होगा। सरकार यह दोनों सिक्के डॉ एमजी रामचंद्रन की जन्मशताब्दी के मौके पर जारी करेगी।

गौरतलब है कि भारतीय रुपयों और सिक्कों के बारे में तथ्य है कि रुपया’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द ‘रुपयक’ से हुई जिसका अर्थ ‘चांदी’ है और रुपया का संस्कृत में अर्थ ‘चिन्हित मुहर’ है। इस रुपये के इतिहास 15 वीं सदी तक का है जब शेर शाह सूरी ने इसकी शुरुआत मानी जाती है।

जानें जारी होने वालों सिक्के के बारें में.

  • मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सौ रुपये का नया सिक्का 44 मिलीमीटर का होगा। इसका वजन 35 ग्राम होगा।
  • इसके अगले भाग पर अशोक स्तंभ होगा। इसके एक ओर भारत और एक ओर इंडिया लिखा होगा।
  • इसके नीचे अंकों में 100 लिखा मुख्य प्रकार के सिक्के होगा। सिक्के के पिछले भाग पर एमजी. रामचंद्रन की फोटो होगी। फोटो के नीचे 1917-2017 लिखा होगा।
  • सौ रुपये का सिक्का चार धातुओं को मिलाकर बनेगा जिसमें चांदी 50 फीसद, तांबा 40 फीसद, निकल पांच फीसद और जस्ता पांच फीसद होगा।
  • वहीं पांच रुपये का सिक्का 23 मिलीमीटर का होगा, जिसका वजन छह ग्राम होगा।
  • इसके अगले भाग पर अशोक स्तंभ बना होगा जिसके नीचे सत्यमेव जयते लिखा होगा।

जानें भारत में सिक्कों के प्रचलन के बारें में.

रुपये का इतिहास 15 वीं सदी तक का है जब शेर शाह सूरी ने इसकी शुरुआत की थी। उस समय तांबे के 40 टुकड़े एक रुपये के बराबर थे। मूलतः रुपया चांदी से बनाया जाता था जिसका वजन 11.34 ग्राम था। ब्रिटिश शासन के दौरान भी चांदी का रुपया चलन में रहा।

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सन् 1815 तक मद्रास प्रेसिडेंसी ने फनम आधारित मुद्रा जारी कर दी थी। तब 12 फनम एक रुपये के बराबर था। सन् 1835 तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की तीन प्रेसिडेंसियों बंगाल, बाॅम्बे और मद्रास ने अपने अपने सिक्के जारी कर दिए थे। सन् 1862 में नए सिक्के जारी किये गए जिन्हें शाही मुद्रा कहा गया। इन पर महारानी विक्टोरिया की एक छवि और भारत का नाम था। आजादी के बाद भारत में पहला सिक्का सन् 1950 में जारी किया गया।

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