विदेशी मुद्रा बाजार में प्रमुख भागीदार कौन हैं

आय में सुधार का इंतजार नहीं करेगा शेयर बाजार
क्रेडिट सुइस वेल्थ विदेशी मुद्रा बाजार में प्रमुख भागीदार कौन हैं मैनेजमेंट के भारतीय इक्विटी शोध प्रमुख जितेंद्र गोहिल ने पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में कहा कि मार्च के निचले स्तरों से भारी तेजी के बाद उनकी शोध फर्म परिसंपत्ति वर्ग के तौर पर इक्विटी पर तटस्थ बनी हुई है, लेकिन उनका मानना है कि भारतीय बाजार मजबूत बने रहेंगे, क्योंकि वैश्विक बॉन्ड बाजार का प्रतिफल आकर्षक नहीं है। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
मार्च के निचले स्तरों से भारी तेजी के बाद बाजारों पर आपका नजरिया ?
किसी मजबूत वित्तीय समर्थन के बगैर, अर्थव्यवस्था के लिए फिलहाल कोविड-19 से पहले जैसे स्तरों पर लौटना कठिन होगा। लॉकडाउन की वजह से अप्रैल में दर्ज की गई गिरावट के बाद तिमाही आधार पर सुधार देखा गया है। दूसरी तरफ, बाजार सिर्फ अर्थव्यवस्था पर निर्भर नहीं हैं बल्कि इसके अलावा कई अन्य कारक भी हैं। बाजार आय में सुधार तक इंतजार नहीं करेगा। साथ ही, प्रमुख सूचकांक ऐसे शेयरों पर ज्यादा केंद्रित हैं जो भारत में जमीनी वास्तविकता से कम प्रभावित होते हैं। लागत नियंत्रण और वैश्विक केंद्रीय बैंकों से अप्रत्याशित समर्थन की मदद से आय में आए सकारात्मक बदलाव को देखते हुए इक्विटी बाजारों में भरोसा लौटा है। हम परिसंपत्ति वर्ग के तौर पर इक्विटी पर तटस्थ बने हुए हैं, क्योंकि क वैश्विक बॉन्ड बाजार का प्रतिफल आकर्षक नहीं दिख रहा है।
आरबीआई पॉलिसी के बाद निर्धारित आय सेगमेंट कितना आकर्षक हो गया है?
निर्धारित आय से जुड़े निवेशक आरबीआई की ताजा मौद्रिक नीति के बाद कुछ आशंकित हैं, क्योंकि इसमें सरकार द्वारा घाटे की फंडिंग जरूरत को लेकर हस्तक्षेप के संदर्भ में कोई स्पष्टता नहीं थी। मुद्रास्फीति के भी सामान्य होने से पहले अगले कुछ महीनों में 6 प्रतिशत या इससे ऊपर बने रहने की संभावना है। फिर भी, वैश्विक केंद्रीय बैंक लंबे समय के लिए ब्याज दरें कम बनाए रखें और आरबीआई के साथ पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार को देखते हुए विदेशी निवेशकों के लिए स्थिति कुछ हद तक सहज है। ज्यादा विदेशी पूंजी आकर्षित करने के लिए रुपये को मजबूत बनाए रखने की जरूरत है।
मौजूदा स्तरों पर आपके पसंदीदा क्षेत्र कौन से हैं?
कई क्षेत्रों ने इस तेजी में पूरी तरह से हिस्सा नहीं लिया है और वे आगे अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, बड़े निजी क्षेत्र के बैंक बड़ी पूंजी जुटा चुके हैं जिससे हमें उनके परिदृश्य में ज्यादा भरोसा दिख रहा है। हम निजी क्षेत्र के बड़े बैंकों में 12-18 महीने की अवधि के नजरिये से निवेश की सलाह दे रहे हैं। मल्टीप्लेक्सों के लिए, आय को कोविड-19 से पहले जैसी स्थिति में लौटने में तीन साल लग सकते हैं और इसकी ज्यादा संभावना है कि ये शेयर तीन वर्ष में अपने पिछले स्तरों पर वापस आ जाएंगे जिससे मजबूत प्रतिफल की संभावना दिख रही है। दूरसंचार को लेकर भारत में अलग कहानी दिख रही है। जहां डेटा खपत सर्वाधिक है, वहीं यहां डेटा कीमत दुनिया में सबसे कम है। हम दूरसंचार क्षेत्र पर सकारात्मक हैं।
क्या कॉन्ट्रा दांव के तौर पर मिडकैप और स्मॉलकैप में निवेश किया जाना चाहिए?
मिडकैप में ताजा तेजी ने मूल्यांकन महंगा बना दिया है। मौजूदा विदेशी मुद्रा बाजार में प्रमुख भागीदार कौन हैं समय में, निफ्टी मिडकैप 100 सूचकांक निफ्टी के मुकाबले 5 प्रतिशत की तेजी पर कारोबार कर रहा है। इस तरह से, मूल्यांकन के हिसाब से मिडकैप सस्ते नहीं हैं। दिलचस्प यह है कि हमने कोविड-19 महामारी के बाद बाजार में छोटे निवेशकों की शानदार भागीदारी दर्ज की है। यह रुझान बरकरार रहने से मिडकैप शेयरों के लिए दिलचस्पी मजबूत बनी रहेगी। हालांकि निवेशकों को शेयरों के चयन पर ध्यान देने की जरूरत होगी। हम फार्मा और केमिकल क्षेत्र में मिडकैप शेयरों को खरीदने का सुझाव दे रहे हैं।
जून तिमाही के नतीजों के बाद भारतीय उद्योग जगत की प्रबंधन प्रतिक्रियाओं पर आपकी क्या राय है?
उम्मीद पहले से ही काफी कम थी और अब कॉरपोरेट जगत ने लागत कटौती पर जोर दिया है जिससे मार्जिन में मदद मिल रही है। कुल मिलाकर मार्जिन उम्मीद से बेहतर है। प्रमुख आकर्षण आईटी, फार्मा और सीमेंट क्षेत्र रहे हैं जिनमें हमने अच्छी बढ़त दर्ज की और इन क्षेत्रों में आय को लेकर बेहतर संभावना है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में एक पैसे का सुधार, 77.49 पर रहा
मुंबई, 13 मई (भाषा) मुद्रास्फीति संबंधी चिंताओं और अमेरिकी मुद्रा की मजबूती के चलते रुपये ने शुक्रवार को अपनी शुरुआती बढ़त गंवा दी और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सिर्फ एक पैसे की तेजी के साथ 77.49 (अनंतिम) के स्तर पर बंद हुआ।
विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि अन्य क्षेत्रीय मुद्राओं में कमजोरी और निराशाजनक आर्थिक आंकड़ों का रुपये पर असर पड़ा। दिन के कारोबार में रुपया विदेशी मुद्रा बाजार में प्रमुख भागीदार कौन हैं एक सीमित दायरे में रहा।
इस दौरान भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के हस्तक्षेप से रुपये की गिरावट को थामने में थोड़ी मदद मिली।
अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले 77.35 पर खुला और दिन के कारोबार में 77.26 से 77.विदेशी मुद्रा बाजार में प्रमुख भागीदार कौन हैं 49 के दायरे में रहा।
कारोबार के अंत में रुपया 77.49 पर बंद हुआ, जो पिछले बंद भाव से सिर्फ एक पैसे की बढ़त दर्शाता है।
रुपया बृहस्पतिवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 25 पैसे टूटकर 77.50 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ था।
डॉलर सूचकांक के मजबूत होने और विदेशी कोषों की बिकवाली के चलते रुपये में साप्ताहिक आधार पर 57 पैसे की गिरावट हुई।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा, ‘‘सभी कारकों के बीच नकदी कारक अनिवार्य रूप से हालिया बाजार में सबसे महत्वपूर्ण है। बाजार भागीदार सुरक्षित जगह की तलाश कर रहे हैं।’’
परमार ने कहा कि क्षेत्रीय मुद्राओं में कमजोरी और निराशाजनक आर्थिक आंकड़ों का असर स्थानीय मुद्रा पर पड़ा, जबकि आरबीआई के हस्तक्षेप ने नुकसान को सीमित किया।
खाद्य वस्तुओं की महंगाई के चलते खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में 7.79 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंच गई।
इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.05 प्रतिशत गिरकर 104.79 पर आ गया।
शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बृहस्पतिवार को 5,255.75 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे।
वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 1.56 प्रतिशत बढ़कर 109.13 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर पहुंच गया।
भाषा पाण्डेय प्रेम
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इस बार भी राहत नहीं, भारत बना रहा अमेरिका की इस संदिग्ध सूची में
अमेरिका ने पहली बार मई 2018 में संदेहास्पद विदेशी मुद्रा नीतियों वाले देशों की निगरानी सूची में भारत को शामिल किया था। इसके बाद वर्ष 2019 के मध्य में भारत को इस सूची से बाहर कर दिया गया था। लेकिन जब दिसंबर 2020 में सूची जारी की गई तो भारत को फिर से शामिल कर लिया गया।
भारत का नाम करेंसी बिहेवियर वाच लिस्ट में (File Photo)
हाइलाइट्स
- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के एडमिनिस्ट्रेशन ने भारत को इस तिमाही भी राहत नहीं दी है
- उसने चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और इटली समेत 11 देशों को उनकी मुद्रा के व्यवहार को लेकर निगरानी सूची में रखा है
- अमेरिका हर तिमाही इस सूची में वैसे देशों को शामिल करता है, जिसकी मुद्रा कमजोर है इसलिए वैसे देशों को निगरानी सूची में रखा जाता है
पहली बार मई 2018 में शामिल
अमेरिका ने पहली बार मई 2018 में संदेहास्पद विदेशी मुद्रा नीतियों वाले देशों की निगरानी सूची में भारत को शामिल किया था। इसके बाद वर्ष 2019 के मध्य में भारत को इस सूची से बाहर कर दिया गया था। लेकिन जब दिसंबर 2020 में सूची जारी की गई तो भारत को फिर से शामिल कर लिया गया।
कौन बनाता है यह सूची
अमेरिका की कांग्रेस के निर्देश पर वहां की ट्रेजरी प्रमुख व्यापारिक भागीदार देशों की एक सूची बनाती है जिसमें ऐसे भागीदार देशों की मुद्रा के व्यवहार और उनकी वृहदआर्थिक नीतियों पर नजदीकी से नजर रखी जाती है।
कौन डाला जाता है इस सूची में
अमेरिका के 2015 के कानून के मुताबिक कोई भी अर्थव्यवस्था जो कि तीन में से दो मानदंडों को पूरा करती है उसे निगरानी सूची में रख दिया जाता है। हालांकि इस सूची में शामिल होना किसी प्रकार के दंड और प्रतिबंधों के अधीन नहीं होता है। लेकिन, यह निर्यात लाभ हासिल करने के लिये मुद्राओं के अवमूल्यन सहित (विदेशी मुद्रा नीतियों के संदर्भ में) वित्तीय बाज़ारों में देश की वैश्विक वित्तीय छवि को नुकसान पहुंचाता है।
रुपया 48 पैसे की तेजी के साथ 82.33 प्रति डॉलर पर पहुंचा
मुंबई, 27 अक्टूबर (भाषा) डॉलर के अपने उच्चतम स्तर से नीचे आने के कारण अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया बृहस्पतिवार को अमेरिकी मुद्रा की तुलना में 48 पैसे की मजबूती के साथ 82.33 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
विदेशी निधियों का ताजा निवेश होने तथा घरेलू शेयर बाजार में तेजी के रुख के कारण भी रुपये को समर्थन मिला।
अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 82.15 पर खुला और बाद में इसने 82.14 के उच्च स्तर तथा 82.52 के निचले स्तर को छुआ। कारोबार के अंत में यह अपने पिछले बंद भाव के मुकाबले 48 पैसे मजबूत होकर 82.33 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
पिछले कारोबारी सत्र में रुपया सात पैसे की तेजी के साथ 82.81 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। रुपये का इससे पहले का बंद भाव सात पैसे की तेजी दर्शाता 82.81 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। बुधवार को दिवाली बलिप्रतिपदा के मौके पर विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार बंद रहे थे।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार एवं सर्राफा विश्लेषक गौरांग सोमैया ने कहा, ‘‘अपनी प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी मुद्राओं की तुलना में डॉलर में आई कमजोरी से रुपये को समर्थन मिला। अमेरिका के उम्मीद से कहीं कमजोर आर्थिक आंकड़ों से डॉलर में कमजोरी आई।’’
दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को आंकने वाला डॉलर सूचकांक 0.36 प्रतिशत की तेजी के साथ 110.09 पर था।
इधर, 30 शेयरों पर आधारित बीएसई सेंसेक्स 212.88 अंक बढ़कर 59,756.84 अंक पर बंद हुआ।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.06 प्रतिशत घटकर 95.63 डॉलर प्रति बैरल रह गया।
शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध लिवाल रहे। उन्होंने बृहस्पतिवार को 2,818.40 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर खरीदे।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा, ‘‘डॉलर की बिकवाली होने से रुपये में पर्याप्त तेजी आई। हालांकि मजबूत शुरुआत के बाद मासांत की डॉलर मांग के कारण रुपये की धारणा कुछ प्रभावित हुई।’’
अमेरिका ने भारत को अपनी करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से हटाया, चीन को लेकर कही ये बात
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने भारत को अपनी करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से बाहर कर दिया है. भारत पिछले दो साल से इस सूची में था.
TV9 Bharatvarsh | Edited By: मुकेश झा
Updated on: Nov 12, 2022 | 1:05 AM
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने भारत को अपनी करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से बाहर कर दिया है. भारत पिछले दो साल से इस सूची में था. भारत के अलावा अमेरिका ने इटली, मेक्सिको, थाईलैंड, वियतनाम को भी अपनी करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से हटा दिया है. इस व्यवस्था के तहत प्रमुख व्यापार भागीदारों के मुद्रा को लेकर गतिविधियों तथा वृहत आर्थिक नीतियों पर करीबी नजर रखी जाती है.
अमेरिका ने यह कदम ऐसे समय पर उठाया है, जब अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन भारत के दौरे पर हैं. येलेन ने शुक्रवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बैठक की और इसी दिन अमेरिका के ट्रेजरी विभाग ने यह कदम उठाया है.
चीन समेत ये देश लिस्ट में शामिल
ट्रेजरी विभाग ने संसद को अपनी छमाही रिपोर्ट में कहा कि चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान सात देश हैं जो मौजूदा निगरानी सूची में हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन देशों को लिस्ट से हटाया गया है, उन्होंने लगातार दो रिपोर्ट में तीन में से सिर्फ एक मानदंड पूरा किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अपने विदेशी विनिमय हस्तक्षेप को प्रकाशित करने में विफल रहने और अपनी विनिमय दर तंत्र में पारदर्शिता की कमी के चलते ट्रेजरी विभाग की नजदीकी निगरानी में है. इस व्यवस्था के तहत प्रमुख व्यापार भागीदारों के मुद्रा को लेकर गतिविधियों तथा वृहत आर्थिक नीतियों पर करीबी नजर रखी जाती है.
करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट क्या है?
अमेरिका अपने प्रमुख भागीदार देशों की करेंसी पर निगरानी के लिए यह सूची तैयार करता है. इस व्यवस्था के तहत प्रमुख व्यापार भागीदारों की मुद्रा को लेकर गतिविधियों तथा वृहत आर्थिक नीतियों पर करीबी नजर रखी जाती है. अमेरिका अपनी करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में उन देशों को रखा जाता है, जिनकी फॉरेन एक्सचेंज रेट पर उसे शक होता है. भारत पिछले दो साल से अमेरिका की मुद्रा निगरानी सूची में था.
भारत दौरे पर अमेरिकी वित्त मंत्री
अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने कहा कि इस समय वैश्विक आर्थिक परिदृश्य काफी चुनौतीपूर्ण है. उन्होंने कहा कि उच्च मुद्रास्फीति इस समय कई विकसित और विकासशील देशों के लिए चुनौती है. विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक इस समस्या से निपटने के लिए प्रयास कर रहे हैं. येलेन ने कहा कि मुद्रास्फीति का प्रमुख कारण रूस का यूक्रेन पर हमला भी है.
इससे ऊर्जा और खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़े हैं. कई उभरते बाजार हैं, जहां कर्ज और ब्याज दर अधिक है. ऐसे में ऊर्जा और खाद्य वस्तुओं के दाम में तेजी से उनमें से कुछ के लिये कर्ज को लेकर दबाव बढ़ा है और इसको लेकर संकट पैदा हो रहा है. उन्होंने कहा कि हमें आने वाले समय में इससे निपटने की जरूरत होगी. (भाषा से इनपुट के साथ)